- यूकेडी में अपने शिखर नेतृत्व को लेकर जबरदस्त उत्साह
- फरवरी से 15 मार्च तक सभी बैंडबाजों की बुकिंग, बराती नाचने को तरसेंगे
उत्तराखंड क्रांति दल में इन दिनों जबरदस्त उत्साह है। पार्टी से जुड़े पुराने और नये साथी गर्भ (गर्व नहीं) की अनुभूति कर रहे हैं कि यूकेडी के वरिष्ठ नेता एक नया इतिहास रचने जा रहे हैं। यूकेडी के अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी इन दिनों नंदा देवी चोटी पर तिरंगा फहराने की तैयारी कर रहे हैं। वो बेस कैंप में चढ़ाई के लिए शरीर को मौसम के अनुकूल बनाने में जुटे हुए हैं। उधर, फील्ड मार्शल दिवाकर भट्ट भी कामेट पर चढ़ने के लिए हरिद्वार में कठोर तप कर रहे हैं ताकि ठंडी हवाओं और बर्फीले तूफानों का उन पर कोई असर न हो सके।
अपने दोनों वरिष्ठ नेताओं को चोटी फतह को लेकर यूकेडी में जबरदस्त उत्साह है। पार्टी के नौ बैंक एकाउंट में जबरदस्त फंडिंग हो रही है। दल के कार्यकर्ता और नेता चाहते हैं कि ऐरी और भट्ट को किसी तरह की आर्थिक अड़चन न आएं और पर्वतारोहण के लिए वो सभी उपकरण खरीद सके। दोनों नेताओं की सहायता के लिए एक्सट्रा आक्सीजन सिलेंडरों की व्यवस्था की गयी है। ये सिलेंडर नारायण सिंह जंतवाल, एपी जुयाल और त्रिवेंद्र पंवार लेकर साथ जाएंगे। रतूड़ी रेकी करेंगे। सूत्रों का कहना है कि नंदा देवी और कामेट पर पर्वतारोहण के बाद मई-जून में दोनों नेता बोरिंग हो चुके एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए नये रूट की तलाश करेंगे।
इधर, यूकेडी ने अपने दोनों नेताओं के मनोबल को बढ़ाने के लिए फरवरी से 15 मार्च तक देहरादून के सभी बैंड बाजों की बुकिंग कर ली है। मकरैणी-पंचमी पर कई शादियों में बैंडवालों की किल्लत हो जाएगी। संभवत: उन्हें हरिद्वार या ऋषिकेश से बैंड मंगाने पड़ें। वरना बारातियों को नाचने के लिए यूकेडी के पास जाना होगा।
दरअसल, काशी सिंह ऐरी तो दिवाली के बाद ही प्रदेश भर का भ्रमण करना चाहते थे, लेकिन उन्होंने तय किया कि जनता फतह तो होती रहेगी, यदि नंदा देवी और कामेट पर जीत हासिल हो जाए तो इतिहास में नाम हो जाएगा। ऐरी ने चुनाव लड़ने के उत्सुक नेताओं को कहा, बालिग हो चुके हो, अपना-अपना देखो। यूरोप में तो हाईस्कूल के बाद ही बच्चों को घर से अलग कर दिया जाता है। तुम तो घोर बालिग हो। मैं और भट्ट चले शिखर की ओर। जय उक्रांद, जय उत्तराखंड। दिवाकर भट्ट भी रहस्यमयी हंसी हंसते हुए कुछ बोल रहे थे कि मुई घड़ी का अलार्म बज गया और मेरी नींद खुल गयी। अच्छा खासा सपना टूट गया।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]