जीवन का अनुभव

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कैसे – “स्त्री और पुरुष सोना और लोहा है” ?
-हथियार, औजार, सुरक्षा द्वार, इमारत की नींव, स्तंभ और छत अर्थात प्रत्येक के लिए लोहे (पुरुष) की आवश्यकता और अनिवार्यता होती है।
-लोहे की प्रकृति प्रदत्त जन्मजात प्रवृत्तियां – कठोरता, मजबूती और ठहराव के कारण उसकी उपस्थिति जल-थल-नभ में देखी जा सकती है।
लेकिन
-सोना (स्त्री) बहुमूल्य और आर्थिक संकट में तारणहार (उबारने वाला) होने के उपरांत भी अपने नाज़ुक, संवेदनशील और आकर्षण के स्वाभाविक गुणों के कारण महत्वपूर्ण स्थानों, कार्यों और आयोजनों पर ही उपस्थित होता है।
अब इसे प्रकृति कहें अथवा पक्षपात?

प्रो. (डॉ) सरोज व्यास
(लेखिका-शिक्षाविद्)
निदेशक, फेयरफील्ड प्रबंधन एवं तकनीकी संस्थान,
(गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय), नई दिल्ली

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