मानसून में बिखरे होली के रंग, डिब्बा है डिब्बा, मौसम विभाग का यंत्र

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  • क्या सैटेलाइट भेज देता है गलत तस्वीर या वैज्ञानिकों को तरंगे समझ में नहीं आ रही?
  • एलआईयू या आईबी की तरह काम कर रहा मौसम विभाग

कल प्रदेश भर में बारिश को लेकर रेड अलर्ट था। इससे पहले यह अलर्ट 19 जुलाई के लिए था। कल सुबह मौसम विभाग ने जो बुलटिन जारी किया, उसमें 23 जुलाई तक आरेंज अलर्ट था जो कि कल देर शाम तक यलो अलर्ट हो गया। यलो का अर्थ सामान्य, आरेंज का अर्थ थोड़ी अधिक और रेड का अर्थ भारी बारिश। यदि पिछले कुछ समय से देखें तो मौसम विभाग का अधिकांश अनुमान सही नहीं निकल रहा है।
अब सवाल यह है कि क्या मौसमी गुब्बारे फुस्स हो गये या हमारे सैटेलाइट सही काम नहीं कर रहे हैं या हमारे वैज्ञानिक रडार से मिलने वाली जानकारी का सही आंकलन नहीं कर पा रहे हैं। या हवाओं का रुख और दबाव समझ नहीं पा रहे हैं। या फिर रडार की क्षमता कम है। या हो सकता है कि कंप्यूटरीकृत गलत बता रहा हो। प्रदेश में कई जगह शायद डाप्लर भी लगे हैं।
इसके बावजूद हम अपने मंत्री जी के बारिश शिफ्टिंग एप पर ही निर्भर हैं। और जिस तरह से एलआईयू या आईबी त्योहारी मौकों पर अपना पल्ला झाड़ने के लिए चेतावनी रिपोर्ट तैयार कर आगे भेजती है कि फलां जगह खतरा है, ताकि यदि कुछ घटित हो जाएं तो उनकी योग्यता पर प्रश्नचिन्ह न लग जाएं। उसी तर्ज पर प्रदेश का मौसम विभाग भी काम कर रहा है। केवल रंग-रंग का खेल हो रहा है। सटीक जानकारी का अभाव सा नजर आता है। मुझे लगता है कि मौसम विभाग के निदेशक आनंद शर्मा के समय अधिक सटीक अनुमान लगाए जाते थे।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

धर्म बड़ा या मानवता बड़ी, समझ नहीं पाता

 

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