- धाद की रीढ़ हैं जुयाल, केदारनाथ आपदा के बाद मिला धाद को नया आयाम
- अब तक दो दर्जन निर्धन कन्याओं की शादी में कर चुके हैं सहयोग
कुछ दिन पहले की बात है। सुबह लगभग नौ बजे विजय जुयाल जी को फोन किया। कहां हो, तो महाशय रोडवेज की बस में ऋषिकेश से आगे जा चुके थे। इतनी सर्द सुबह में कहां जा रहे हो? रुद्रप्रयाग। जिले के गांव कंडारा में एक गरीब कन्या की शादी थी। मैंने कहा कि कार से क्यों नहीं गये। जवाब मिला, लड़की हरिजन है, वहां रहना खाना के लिए कोई तैयार होगा क्या? उस शादी में उन्होंने देहरादून से एकत्रित दुल्हन के कपड़े और पेसे दिये। वापस लौटे तो मैंने खबर के लिए कहा तो कहा कि लड़की को हरिजन मत लिखना। पिता के नाम से समझ जाएंगे। दरअसल, विजय जुयाल जी ऐसे ही विभिन्न ग्रामीण इलाकों में गरीब और बेसहारा लड़कियों की शादियों में सहयोग करते हैं। उनके पास धन नहीं है लेकिन दिल है। वह देहरादून के विभिन्न संपन्न लोगों से मदद लेते हैं और निर्धन कन्याओं की शादी में मदद करते हैं।
विजय जुयाल ने सामाजिक संस्था धाद को एक नई पहचान दिलाने का काम किया। यह बात अलग है कि वह धाद के गुमनाम सिपाही की तर्ज पर काम करते रहे। 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद धाद ने केदारघाटी के बेसहारा हुए 175 बच्चों की शिक्षा का बीड़ा उठाया। इसके मूल में विजय जुयाल थे। वह केदारघाटी के गांव-गांव घूमे और आपदा में बेसहारा हुए बच्चों का चिहनीकरण किया। गरीब महिलाओं के लिए सिलाई-कढ़ाई और गाय की व्यवस्था की। 70 साल की उम्र में पहाड़ की पगडंडियों पर चलना कोई आसान काम नहीं है। मीलों पैदल चलना होता है। कई बार भूखे भी रहना पड़ता है।
विजय जुयाल ने इससे पहले भी उत्तराखंड आंदोलन के समय 1100 गांवों की पैदल यात्रा की है। वह कई साल अपने परिवार को छोड़कर ग्रामीणों को जागरूक करने में जुटे रहे। विजय का दिल पहाड़ के लिए धड़कता है। ऐसे फक्कड़, यायावर और दिल के रहीस विजय जुयाल को उनके जन्मदिन पर हार्दिक शुभकामनाएं।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]