कल मैं नरेंद्रनगर गया था। नरेंद्रनगर में जिला शिक्षा अधिकारी एसपी सेमवाल जी के कक्ष में बैठा था कि एक युवक वहां आया और उसने मांग की कि उसके भाई की मृत्यु के बाद आश्रित के तौर पर उसे नौकरी दी जाए। युवक का भाई शिक्षक था और कोरोना के कारण उसका निधन हो गया। युवक का कहना था कि जिस स्कूल में उसका भाई शिक्षक था तो उसके प्रधानाचार्य ने उसके छोटे भाई को उत्तराधिकारी बनाते हुए मृतक आश्रित की नौकरी के लिए आवेदन करवा दिया। युवक ने अपने छोटे भाई को एनओसी दे दी थी। फाइल आगे बढ़ गयी लेकिन अभी सीईओ आफिस नहीं आयी।
अब युवक का दावा है कि वो बीएड है। उसे नौकरी दी जाए। उसका छोटा भाई केवल 12वीं पास है। उसका दावा है कि छोटे भाई ने भी उसे एनओसी दी है। मैंने युवक को कहा कि उसे अपने छोटे भाई को यह नौकरी दे देनी चाहिए क्योंकि वह कम पढ़ा लिखा है। तुम बीएड हो तो तुम्हें नौकरी मिल ही जाएगी। तीनों ही भाई अविवाहित हैं।
युवक ने तर्क दिया कि जब शिक्षक भाई कोरोनाग्रस्त था तो उसके इलाज पर 14-15 लाख खर्च हुए। इसके बावजूद उसकी जान नहीं बची। अब परिवार आर्थिक संकट में है। यदि उसे नौकरी मिलती है तो वह परिवार का कर्ज भी चुकाएगा और छोटे भाई को भी देख लेगा। जबकि छोटे भाई को महज इतना ही वेतन मिलेगा कि वह दो वक्त की रोटी खा सके।
मैं उसका जवाब सुनकर संशय में हूं। छोटा भाई वहां मौजूद नहीं था, लेकिन मैं समझ सकता हूं कि बेरोजगारी के इस दौर में रिश्तों की अहमियत समझ सकेगा क्या? क्या युवक सही है? क्या उस पर विश्वास किया जा सकता है?
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]