ये पठान फिल्म का सीन नहीं है, बाबा केदार के धाम का है!

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  • ये सरकार का गंवार टूरिज्म है
  • संभलो, बाबा का धाम न तो हनीमून डेस्टिनेशन है और न ही सेल्फी प्वाइंट

मैं भी हिन्दू हूं। थोड़ा-बहुत पुराण, उपनिषद और शास्त्रों के बारे में जानता हूं। शिव एकांत में वास करते हैं। मैं कल से शिव और शिवलिंग के ज्ञाताओं और उच्च शिक्षित व्यास और ब्राह्मणों से यही जानकारी हासिल कर रहा हूं कि आखिर शिव एकांत में क्यों वास करते हैं? साधना क्या होती है? केदारनाथ के शिवलिंग का अर्थ क्या है? जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार केदारनाथ धाम की चोटी का सीधे नक्षत्र से सामना होता है। नक्षत्र इस चोटी से होते हुए केदार बाबा के गर्भगृह तक ऊर्जा का संचार करते हैं। जब कोई भी श्रद्धालु शिवलिंग पर जलाभिषेक करता है तो इसकी ऊर्जा का एक अंश उस श्रद्धालु को भी मिल जाता है। यानी नक्षत्र से ऊर्जा भक्त तक पहुंचती है। लेकिन जिस तरह से एक मोबाइल बैटरी स्टोरेज से तीन-चार ही मोबाइल चार्ज हो सकते हैं, इसके बाद उसकी क्षमता खत्म हो जाती है, ठीक उसी प्रकार से शिवलिंग की ऊर्जा भी समाप्त हो जाती है। यदि एक दिन में हजारों लोग बाबा के दर्शन करेंगे। शिवलिंग पर जलाभिषेक करेंगे तो अधिकांश को कोई फल नहीं मिलने वाला।
इसके विपरीत सरकार गंवार टूरिज्म को प्रमुखता दे रही है। हिन्दू का अर्थ वोट बैंक से है। जितने बाबा के धाम पहुंचेंगे, उतने वोट पक्के। पर केदारधाम में इस कदर प्रेम का प्रदर्शन और सैर-सपाटा कहां तक उचित है? अमरनाथ और कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर क्यों नहीं जाते हैं ये लोग? जिसकी अटूट श्रद्धा होती है, वही वहां जाता है। लेकिन चारधाम तो सैर-सपाटा बना दिया गया है। न तो सरकार को हिमालय की चिन्ता है, न ग्लोबल वार्मिंग की, न पिघलते ग्लेशियरों की और न ही मध्य हिमालय में बनी 700 से भी अधिक झीलों की। सरकार की चिन्ता 2024 का लोकसभा चुनाव है और वोट के लिए हिमालय की बलि ली जा रही है। एक बार फिर स्पष्ट कर दूं, चारधाम मोक्ष का धाम है, प्रेम प्रदर्शन या सैर-सपाटे के केंद्र नहीं।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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