23 साल का युवा अमन जंग हार गया

307
  • एम्स ऋषिकेश में इलाज में हुई लापरवाही
  • पत्रकार संगठन और सरकार चुप्पी साधे रहे, क्योंकि इंद्रजीत ग्रामीण पत्रकार है!

सड़क हादसे में घायल 23 साल के अमन असवाल का कल देर रात सीएमआई में निधन हो गया। इससे पूर्व वह लगभग एक महीने से भी अधिक समय तक जिंदगी के लिए जंग लड़ता रहा। बहादुर था अमन। खूब लड़ा, लेकिन नीयति के आगे किसकी चलती है। पहाड़ में विषम परिस्थितियों में जूझते ग्रामीण पत्रकार इंद्रजीत असवाल पर दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा है। कठिन जीवन संघर्ष के बीच एक जवान बेटे का यूं जाना बहुत ही व्यथित करता है।
मैं भी इस समाचार से बहुत व्यथित हूं। परसों मैं अमन को देखने के लिए सीएमआई अस्पताल गया था। प्रख्यात न्यूरो सर्जन डा. महेश कुड़ियाल से बात भी हुई थी। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि देर हो गयी। अमन को खाना ही नहीं मिला। उसके शरीर पर मांस ही नहीं बचा था। बीमारी से लड़ने के लिए शरीर में ताकत नहीं थी। बीपी भी 60 के करीब चल रहा था। वेंटीलेटर पर था।
दरअसल यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं कि ठाकुर इंद्रजीत असवाल ने एम्स ऋषिकेश पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि जब तक अमन आईसीयू में था तो उसकी अच्छे से देखभाल हुई थी। वार्ड में शिफ्ट करने के बाद उसकी देखभाल और चिकित्सा में घोर लापरवाही बरती गयी। उनके बेटे को कोरोना पीड़ित के साथ बेड रखा गया। इसके अलावा एम्स वाले उसके बेड और वार्ड को बदलते रहे। इस कारण कई बार अमन को खाना ही नहीं मिला। इससे भी उसके लड़ने की शक्ति क्षीण हो गयी थी। बाद में उसे डिस्चार्ज करने को कह दिया।
ठाकुर इंद्रजीत सिंह ग्रामीण पत्रकार हैं। पता नहीं जिस संस्थान के लिए काम कर रहे हैं, वह कितना भुगतान करता होगा? करता भी होगा या नहीं। पर मुझे समझ में नहीं आता कि पत्रकार संगठन क्यों उसकी मदद के लिए आगे नहीं आए? पत्रकार कल्याण कोष का क्या काम है? सरकार पत्रकारों और उनके परिवारों की सामाजिक सुरक्षा क्यों नहीं करती? किसी नेता को यदि बुखार भी होता है तो उसे मेदांता ले जाया जाता है, लेकिन अमन के लिए सरकार, पत्रकार संगठन और संस्थान सब चुप रहे? क्यों? हादसा तो किसी के साथ भी हो सकता है। ग्रामीण पत्रकारों के लिए अलग नीति क्यों नहीं बनती? उनके और उनके परिजनो के लिए स्वास्थ्य और चिकित्सा योजना बननी चाहिए ताकि आपातकालीन परिस्थितियों में उनकी सहायता हो सके। अमन का यूं जाना बहुत अखर रहा है, उसे भावभीनी श्रद्धांजलि।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

‘बाटी-चूरमा‘ से ढ़िंडका बनाने लगी दीपिका

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here