- इन बेटियों के सपनों की हत्या का जिम्मेदार कौन?
- मित्र पुलिस आखिर किसकी, शाह की या बेटियों की?
हम आज जिस दौर में जी रहे हैं, वह नपुंसक समाज है। यहां धर्म के नाम पर सड़क पर कत्ले-आम हो जाता है लेकिन जब समाज में कुछ गलत हो तो लोग सोचते हैं कि होने दो, हमारे साथ थोड़े हुआ है। इसलिए चुप्पी साध लेते हैं। चूंकि हम नपुंसक है तो इसकी सजा हमारे नौनिहालों को भुगतनी पड़ रही है चाहे वह रोजगार का मामला हो या खेल का।
मैं कई दिनों से चिल्ला रहा था कि जागो। 15 साल की नाबालिग लड़की के साथ घिनौने कोच नरेंद्र शाह ने गुनाह किया है। कह रहा था कि सीएयू एक बड़ा मक्कड़जाल है। इसमें अधिकांश बाहरी लोगों का कब्जा है। उन्हें देवभूमि से कोई लेना-देना नहीं है। सीएयू के पदाधिकारियों को पुलिस के आलाधिकारियों की शह है। तीन आईएएस भी इससे जुड़े हैं। पूरे प्रदेश में एक पिच नहीं बनी और करोड़ों खर्च हो गये हैं। ऐसे में जागो।
वही हुआ जिसका डर था। समाज नहीं जागा। पुलिस ने कमजोर पैरवी की और घिनौना, वहशी दरिंदा और भेड़िया नरेंद्र शाह एक दिन के लिए भी जेल नहीं गया और समाज में छूट गया। बताओ, अब क्रिकेट में कैसे आगे बढ़ेंगी बेटियां? ये मित्र पुलिस किसकी है? बेटियों की या शाह की? वो तीन बेटियां अक्टूबर महीने से ये सब झेल रही थी, डर रही थीं। किसी तरह से हिम्मत जुटाकर सामने आईं तो ये सिला मिला? हद है नपुंसकता की।
इधर, हनुमान जयंती पर हिन्दू संगठन सड़कों पर थे। बिना हेल्मेट उनके वाहनों पर भगवा झंडे लहरा रहे थे, लेकिन वो भूल गये कि हनुमान ने माता सीता के लिए लंका जला दी थी। तुम बेटियों की अस्मिता बचाने के लिए क्या कर रहे हो? क्रिकेट की इस कलंक कथा में एक आवाज नहीं फूटी इन तथाकथित हिंदू राष्ट्र समर्थकों से?
कल देर रात मुझे फोन आया कि अब तीनों लड़कियां अब गांव की लौटने की तैयारी में हैं और उनकी जान खतरे में है। वो बहुत डरी हुई हैं और अपना सामान समेट रही हैं। देखते ही देखते यौन शोषण के खिलाफ आवाज उठाने वाली तीन बेटियों के सपनों की हत्या हो गयी है। यही है सच्चा महिला सशक्तीकरण और बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा। क्या यही सब देखने के लिए हमने अलग राज्य की मांग की? योगी सरकार में होते तो न्याय मिल गया होता। घिनौने शाह के घर पर बुल्डोजर चल गया होता।
जाओ, बेटियों वापस लौट जाओ गांव, शहर के लोग नपुंसक होते हैं। खानों में बंटे होते हैं। स्वार्थी होते हैं। चमकदार गलियों और बंद घरों में बदबूदार समाज रहता है। इस घुटन भरे और बदबूदार माहौल से दूर चली जाओ। लौट जाओ अपने गांव।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]