- बदरी-केदार की मिट्टी को गूंथा और कैनवास पर उतार दिया
- मड पेंटिंग को दे रहे नया आयाम, नवरूप कंपनी का सृजन किया
प्रकृति और नीयति किसको कहां और कैसे साथ ले आती है, यह तय नहीं। आज मैं वसंत विहार में दो युवा चित्रकारों से मिला, आयुष बिष्ट और अमिता बिष्ट। दोनों ही चित्रकला को समर्पित। दोनों के घरों के आर्थिक हालात एक जैसे। दोनों ने ही पहाड़ की मिट्टी को सिर-माथे लगाया, उसे छाना, गूंथा और अपनी कल्पनाओं से उनको कागज पर उकेर दिया। ये आकृतियां कुछ ऐसे समर्पण और निष्ठा से उकेरे गयी हैं कि हर तस्वीर बोलती नजर आती है।
सबसे अहम बात यह है कि यह दोनों ही चित्रकार मड पेंटिंग करते हैं। गोचर निवासी आयुष अभी 22 साल का है लेकिन उसने बिना किसी फाइन आर्ट कालेज के ही नेशनल लेवल पर अपनी कला और कल्पना से कला प्रेमियों का दिल जीता है। वह कहता है कि उसने बदरीनाथ मंदिर की मिट्टी और सतोपंथ के पानी से बदरीनाथ मंदिर और पहाड़ की अनेक चित्र कागज पर उकेरे हैं। केदारनाथ की कंकरीली मिट्टी से भी लाजवाब पेंटिंग बनाई हैं।
आयुष को पांचवीं कक्षा से ही चित्रकला का शौक था। धीरे-धीरे परवान चढ़ा। वह साइंस का स्टूडेंट था लेकिन कल्पना लोक में विचरता था और उन्हें पेंसिंल से कागज पर उकेर देता था। आयल कलर, एक्रिलिक आदि बजट से बाहर थे तो पहले क्रियोएंस का इस्तेमाल किया और बाद में पहाड़ की मिट्टी को अपना साथी बना लिया।
अमिता की कहानी दिल छू लेने वाली है। पहाड़ की बेटी अमिता किस तरह से संघर्ष कर अपने हिस्से का आसमां तलाशती है और नया मुकाम हासिल करने की कवायद कर रही है, यह अनुकरणीय है। टिहरी के चंद्रबदनी के एक गांव की अमिता के पिता होटल लाइन से हैं और बेरोजगार हैं। मां आशा वर्कर। अमिता को भी बचपन से चित्रकला का शौक था लेकिन रंग खरीदने के पैसे नहीं होते थे। बेहतर भविष्य के लिए वो किराए पर श्रीनगर गये और वहां अमिता बच्चों को टयूशन देकर अपनी पढ़ाई और चित्रकला का शौक पूरा करती। बाद में यही चित्रकला उसका करियर बन गया। वह गांव से देहरादून आई। उसके संघर्ष की लंबी कहानी है। कई बुरे लोगों ने उसकी मजबूरी का लाभ लेने की कोशिश की।
वह मुस्कराते हुए कहती है कि कई बुरों के चाहने पर कुछ अच्छा हो जाता है। तो ऐसे ही उसकी मुलाकात मसूरी में एक कार्य के दौरान आयुष से हो गयी। आयुष उसे दीदी कहता है। दोनों मिलकर अब मड पेंटिंग्स के साथ ही हाउस मेकओवर का काम कर रहे हैं। दोनों ने एक कंपनी बनाई है नवरूप। दोनों को अब अच्छा काम मिल रहा है और अच्छा नाम भी हो रहा है। आयुष और अमिता को संघर्ष की भट्टी में तपकर कुंदन बनने की यह कहानी अनुकरणीय है। विस्तृत कहानी उत्तरजन टुडे के अगले अंक में प्रकाशित करूंगा। आयुष-अमिता को उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामना।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]