- सात दिन का सत्र, दो दिन में ही खत्म, जनता की परवाह किसे?
- सदन की कार्रवाई चलती रही और विधायक मोबाइल पर व्यस्त रहे
जसपुर के विधायक आदेश चौहान ने सदन में धाकड़ धामी सरकार में कानून-व्यवस्था की पोल खोल दी। भले ही विधायक की निजी जंग हो, लेकिन विधायक ने सदन में बता दिया कि एक एसएसपी विधायक के लिए कितनी बड़ी मुसीबत है। सदन में कहा गया कि एसएसपी 12 लाख रुपये महीने की वसूली करता है। और भी संगीन आरोप हैं। सदन की गरिमा रखने के लिए ही सही, सरकार कुछ तो फैसला लेती, लेकिन सब चुप हैं। यदि राजनीति में नैतिकता होती तो धामी सरकार एसएसपी को तुरंत वहां से हटा देती और जांच बिठा देती। यदि एसएसपी जांच में दोषी पाए जाते तो उन्हें इस तरह की प्रमुख पोस्ट पर कभी तैनात नहीं किया जाता। लेकिन दो दिन गुजर रहे हैं और कुछ भी नहीं हुआ। संदेश क्या गया, नौकरशाही हावी है और विधायकों या मंत्रियों की बस की बात नहीं कि उनसे पार पा जाएं।
उधर, सदन में पहले ही दिन जब राज्यहित के मुद्दों पर बात हो रही थी तो अधिकांश विधायक मोबाइल पर चिपके हुए थे। स्पीकर ऋतु खंडूड़ी को दूसरे दिन हस्तक्षेप करना पड़ा। मोबाइल के लिए सदन को चेतावनी देनी पड़ी। हद है। शीतकालीन सत्र में 600 से भी अधिक सवाल थे, खा गये। पी गये। डकार मार ली और जनता का भला हो गया। न बेरोजगारी की बात हुई, न लॉ एंड आर्डर की और न ही अंकिता हत्याकांड की। बैकडोर से विधानसभा की भर्तियों की बात भी नहीं हुई। सब सवाल सवाल ही रह गये। वोट बैंक के लिए विधेयक पास करा दिये और सदन स्थगित।
स्पीकर का कहना है कि सदन चलाने के लिए पैसे नहीं हैं। इसलिए बेकार में क्यों चलाना। सही बात है, सीएम धामी बताएं कि उनके पास सरकार चलाने के पैसे हैं? यदि नहीं हैं तो क्यों चला रहे हैं। इसे केंद्रशासित प्रदेश बनाने का प्रस्ताव पारित कर दें। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]