- बेटों को सिखाई भयात, अनुशासन और अपनी जड़ों से जुड़े रहना
- बोले, पेड होने के लिए बीज जरूरी है, जमीन जरूरी है़
इस रविवार को दून बलूनी क्रिकेट एकादमी गया। वहां से लौट ही रहा था कि देखता हूं कि एकादमी के बाहर एक मर्सडीज कार रुकी। मैं रुक गया, कार में नीतीश और पूर्व सूबेदार जर्नादन बलूनी थे। कार रुकते ही ड्राइविंग सीट से फुर्ती से नीतीश निकला और दूसरी ओर जा कर फट से कार का गेट खोला। और अपने दादा का हाथ थामकर उन्हें कार से बाहर में आने में मदद करने लगा। दादा के प्रति पोते का प्रेम साफ छलक रहा था। मैंने पूछा, आज दादा जी को घुमाने लाए हो। नीतीश मुस्करा कर बोला, जी। दादा जी को ग्राउंड पर आना अच्छा लगता है।
पूर्व सूबेदार जनार्दन बलूनी की उम्र लगभग 84 साल है। वह बीईजी में थे और फौज में बाक्सर रहे। उम्र के इस पड़ाव में भी उन्हें खेलों से लगाव है। वह अक्सर बलूनी पब्लिक स्कूल या क्रिकेट एकादमी के मैदान में आ जाते हैं। हमेशा खुश दिखते हैं। मस्त रहते हैं। बहुत ही प्यार से बात करते हैं। सरल और सहज हैं।
मैं उनके साथ मैदान में कुछ देर घूमता रहा। उनसे बात करता रहा। वह बताते रहे। जीवन संघर्ष पूर्ण था। लेकिन उन्होंने अपने बच्चों को अनुशासन और अपनी जड़ों से जुड़ना सिखाया। मैंने कहा कि बलूनी ग्रुप चेयरमैन डा. नवीन बलूनी और एमडी विपिन बलूनी के नेतृत्व में एक साम्राज्य बन चुका है। वह मुस्कराए, बोले, सब ईश्वर की कृपा है। पेड़ होने के लिए बीज और जमीन चाहिए। अपनी जमीन से जुड़े रहने वाले ही तूफान में भी टिके रहते हैं। शिखर पर पहुंचने के बाद जो हाशिए पर छूट गये लोगों को आगे बढ़ाने का काम करे, वही मनुष्यता। मैं बोला, बेटों पर गर्व होगा। वह जोर से हंसे और बोले, बेटों के साथ पोतों पर भी है।
पूर्व सूबेदार जर्नादन बलूनी के स्वस्थ जीवन और दीर्घायु की कामना।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]