एसी कमरों में बैठ साकार नहीं होगी सशक्त उत्तराखंड की कल्पना

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  • नौकरशाह सबसे अधिक निकम्मे, जनता से अफसरों का सरोकार नहीं
  • पहाड़ के लोगों की उपेक्षा, चार जिलों तक सिमटा विकास

दो-तीन महीने पहले की बात है। रात के लगभग नौ बजे मुझे एक गंभीर मुद्दे का पता चला। मैंने चीफ सेकेट्री डा. एसएस संधू को फोन किया। कई बार फोन करने पर भी उन्होंने फोन नहीं उठाया। न ही पलट कर फोन आया। जबकि एक चीफ सेकेट्री जानता है कि कोई उन्हें अनावश्यक फोन नहीं करेगा। कल जब चीफ सेकेट्री डा. संधू मसूरी में अपने साथी ब्यूरोक्रेट को धमका रहे थे, तो उन्हें यह बात समझनी होगी कि वह आम जनता के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं। सरकार की सारी धुरी उनसे चलती है। यदि वह जनता को इस तरह से रिस्पांड करेंगे तो अन्य कैसे करेंगे?
मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी में सशक्त उत्तराखण्ड 25 चिंतन शिविर चल रहा है। यह एक अच्छा प्रयास है बशर्ते कि हमारे नौकरशाह 10 प्रतिशत भी पहाड़ या राज्य के प्रति संवेदनशील हों। मैं यह भी जानना चाहता हूं कि गढ़वाल मंडल कमिश्नर कंडोलिया क्यों नहीं बैठते? देहरादून में उनका कैंप आफिस क्यों? एसीएस आनंदवर्द्धन वन्यजीव-मानव संघर्ष पर तो बोले, लेकिन यह नहीं बताया कि सूअर जैसे जानवर को मारने के लिए शैडयूल वन और दो क्या है? ग्रामीण बंदूक कहां से लाएंगे? कहां से गोलियां आएंगी? यानी नीतियां ऐसी बनें जिनको अमल भी लाया जा सके। बिना पहाड़ को जाने कारगर योजनाएं नहीं बन सकती हैं।
लोक निर्माण विभाग के प्रमुख सचिव रमेश सुधांशू को हिमालय और पहाड़ की संवेदनशीलता का कितना ज्ञान है, मुझे नहीं पता, यदि ज्ञान होता तो निश्चित तौर पर टनल और एलीवेटेड रोड की बात नहीं होती। पहाड़ों में जो सड़क हैं, उनको ही गुणवत्तापूर्ण बनाने और डेंजर जोन के आसपास रेलिंग की बात की जाती। पिछले एक हफ्ते में 72 लोगों की सड़क हादसे में मौत हुई है। मंथन में क्यों नहीं इस पर विचार किया गया? नई टाउनशिप विकसित की जानी चाहिए। यह विचार वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का था। उन्होंने पहाड़ में भारत नगर बसाने की बात की थी, लेकिन नेताओं और अफसरों ने अवैध कालोनियां बसा दीं। देर से सही, यह सही फैसला है।
शिक्षा सचिव रविनाथ रमन गढ़वाल कमिश्नर भी रहे हैं और पता नहीं कितने गांवों में घूमे होंगे। उन्हें पहाड़ की स्कूलों की हालत का पता ही नहीं। अधिकांश स्कूल जर्जर हैं और वह मसूरी में रिपोर्ट पढ़ रहे हैं 2041 तक स्कूल भवनों में निवेश की जरूरत नहीं। क्वालिटी एजूकेशन की बात है तो बताएं कि वर्चुअल क्लासेस जो चल रही हैं, उसमें 15 हजार का टीचर पढ़ाता है और 90 हजार वेतन पाने वाला टीचर क्या उस वक्त घास छीलेगा? एससीईआरटी क्या कर रही है? एक राजीव गांधी स्कूल देहरादून है, जो अच्छा कर रहा था, उस स्कूल को भी सरकार ने प्रयोगशाला बना दिया। शिक्षा महानिदेशक बंशीधर तिवारी के अनुसार चालू शिक्षा सत्र में छात्र संख्या बढ़ी है लेकिन इस बात पर मनन नहीं किया गया कि पिछले साल 10वीं और 12वीं में 48 हजार छात्र फेल कैसे हो गये?
मेरा मकसद साफ है कि नौकरशाह नहीं सुधर रहे हैं। उन्हें लगता है कि जनता में नेता ही बुरे हैं। नेता वाकई बुरे हैं। लेकिन नेताओं की नई पौध लाएं कहां से? जनता की सुस्ती और नेता, अफसर, दलाल और ठेकेदारों की चंडाल चौकड़ी से राहत तो मिले। इसके बावजूद यदि मंथन हुआ है तो सराहनीय है। तब और सराहनीय होगा, जब नौकरशाह इस पर अमल भी करें। विकास की योजनाएं देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल और ऊधमसिंह नगर तक न सिमटे।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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