प्रसंगवश: क्या सचमुच भूत होते हैं?

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file photo source: social media
  • आंचरी और भूतों के अस्तित्व पर अब भी संशय
  • विज्ञान नकारता है लेकिन मानव है कि मानता नहीं

कल मैं सोशल एक्टिविस्ट या यूं कहूं कि पहाड़ों के यायावर रतन सिंह असवाल से मिला। उनके साथ थे इतिहास के प्रोफेसर विजय बहुगुणा (अपना वाला घमंडी नहीं)। ठाकुर रतन सिंह हाल में पहाड़ में एक नये ट्रैक ताराकुंड की रेकी कर आए हैं। बात ट्रैक से होते हुए भूत पर आ टिकी। रतन अचानक से बोले, भूत होते हैं, यह बात मैं कह सकता हूं। उन्होंने अपने बचपन की एक घटना सुनाई कि होली मांगने के लिए दूसरे गांव गये थे और वापसी में लौटते हुए एक लड़की भूत पीछे पड़ गया। तरह-तरह के आकार बदले। उस लड़की की घास काटते समय गिरने से मौत हो गयी थी। उन्होंने दूसरा किस्सा सतपुली के अपने महाशीर गोल्डन कैंप का सुनाया। उन्होंने दावा किया कि उनके साथ जयपुर की एक पूरी टीम थी। एक लड़की को अचानक वहां से सिंगटाली पुल के पास बरात जाते हुए दिखाई दी। लड़की ने साथियों से पूछा, सभी बरातियों ने सफेद कपड़े क्यों पहने हैं? रतन के मुताबिक बरात में ढोल-दमाऊं और मशकबीन भी था लेकिन आवाज नहीं आ रही थी। उन्होंने कई फोटो क्लिक किये, लेकिन एक भी तस्वीर नहीं आयी। कैंप कर्मचारियों के मुताबिक यह बरात कभी-कभी नजर आती है। कहा जाता है कि पुराने समय में राजा पुल से आम आदमियों को नहीं गुजरने देता था तो लोग नदी की दूसरी ओर तैर कर जाते थे। एक बरात जा रही थी तो वह डूब गयी।
तो क्या भूत होते हैं? पास बैठे प्रो. विजय बहुगुणा कहते हैं आंचरी और भूत को आंथ्रोपोलाजिस्ट पूरी तरह से नकारते हैं। लेकिन पहाड़ में इस तरह के किस्से सुनाई देते हैं। प्रो. बहुगुणा भूतों के अस्तित्व को नहीं मानते। विज्ञान भी यही मानती है।
केदारनाथ आपदा में हजारों लोग मंदाकिनी में समा गये। मैं कर्नल अजय कोठियाल के रामबाड़ा से केदारनाथ के अनुभवों को कलमबद्ध कर रहा था। कर्नल कोठियाल ने कहा, जब रास्ता बनाने का काम चल रहा था तो उनके लेबर काम छोड़कर भाग जाते थे। उनको दोगुणा-तीन गुणा पैसा देने पर भी वह काम के लिए तैयार नहीं थे। पता किया तो लेबर ने बताया कि रातों को रामबाड़ा और बुग्यालों में भूत दिखाई देते हैं। इस बीच रास्ता बनाते हुए एक बच्चे के सिर का कंकाल भी उन्हें मिला। कर्नल कोठियाल ने मजदूरों के उस भय को कम करने के लिए भूत पार्टी की। बच्चे के कंकाल को अपने टैंट में रखा और फिर वह मजदूरों से किसी तरह से काम ले सके। लेकिन भूतों के डर से फिर भी मजदूर रातों को बाहर निकलने से डरते रहे।
गरुड पुराण में मरने के बाद आत्मा का निकलना और कर्मो के हिसाब से स्वर्ग और नर्क का उल्लेख है। न्यूयार्क के स्टोनी ब्रूक यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ मेडिसीन के रिससिटेशन रिसर्च के निदेशक और क्रिटिकल केयर के फिजीशियन सैन पारनिया ऐसे अनुभवों पर अमरीका और ब्रिटेन के 17 संस्थानों के सहयोगियों के साथ मिलकर उन 2000 लोगों के मृत्यु उपरांत अनुभवों पर अध्ययन कर रहे हैं। भारत में भूतों के लिए गोवा का श्री किंग्स चर्च का नाम अक्सर आता है कि वहां पुर्तगाली भूत नजर आते हैं। दिल्ली की अग्रसेन बाबड़ी को लेकर भी कहा जाता था कि इसका पानी लोगों को आत्महत्या के लिए उकसाता था। अब बाबड़ी सूख चुकी है। राजस्थान के अलवर जिले के मानगढ़ किले में भी भूतों के होने की चर्चा रहती है। सदगुरु ने भी स्वीकारा है कि कुछ समय के लिए आत्मा ब्रहमांड में घूमती हैं। हालांकि एक अंतराल के बाद विलुप्त हो जाते हैं। उनका कहना है कि जब शरीर है तो शरीर वाले भूत हो, जब शरीर नहीं होगा तो भूत कहलाओगे।
पता नहीं सच क्या है? लेकिन हमारे पहाड़ों में आज भी भूत पूजे जाते हैं। वह देवी-देवताओं के पश्वा के संग भी नाचते हैं। सच क्या है, रहस्य ही है। विज्ञान नहीं मानता, हम कथित पढ़े-लिखे भी नहीं मानते, फिर भी छैल, भूत और ऊपरी हवा पूजने गांव और घाटों पर जाते हैं।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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