- राजनीति में कदम-कदम पर बदल जाते हैं रिश्ते और नीयत
- ये पब्लिक है दाज्यू सब जानती है, लेकिन अभागी है चुप रह जाती है।
ब्ढ़ती उम्र के साथ हरदा के घाव भी हरे हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर पहले उनकी लड़ाई राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी के साथ हुई और अब यह शांत हुई तो अब यह युद्ध कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य के साथ शुरू हो गया है। हरदा ने कुछ देर पहले पोस्ट की है जिसमें उन्होंने सोमेश्वर की प्यारी-प्यारी भुलि कह कर रेखा आर्य को घेरा है कि जब भाजपा ने उनकी सरकार गिराने के लिए पूरा जोर लगा दिया था तो शक्ति परीक्षण के समय रेखा ने उनका साथ नहीं दिया। कुमाऊंनी में की गई पोस्ट में इमोशनली कहा गया है कि शक्ति परीक्षण में उन्हें आखिरी समय तक उम्मीद थी कि सोमेश्वर की चेलि कहेगी कि काका मैं आपके साथ हूं। लेकिन हरे-हरे नोटों में बहुत ताकत होती है। खैर, कोई बात नहीं।
हरदा यहीं नहीं थमे, उनका यह आरोप हे कि उत्तराखंडी आभूषण और वस्त्र की प्रतियोगिता जो समाज कल्याण विभाग ने करवाई वो भी उनके द्वारा शुरू की गयी आनलाइन प्रतियोगिता को कापी कर लिया। यह भी ठीक लेकिन अब गरीब और निराश्रित बच्चों के राशन यानी टेक होम राशन के टेंडर करके महिला समूहों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
चलो सोशल मीडिया पर इस युद्ध से पता तो चल रहा हे कि आखिर हो क्या रहा है। वरना मुख्यधारा का मीडिया तो दो टके का हो गया है। उस पर विश्वास नहीं होता। बिके और डरे लोगों का समूह है कारपोरेट मीडिया। हरदा की बात कहीं हद तक ठीक है। हरदा की सरकार गिराने के लिए भाजपा ने पूरी जोर अजमाइश की। लेकिन हरदा ने भी तो प्रदेश को नुकसान पहुंचाने की कोई कमी नहीं की। हरदा को याद रखना होगा कि उनके राज में उनके कुछ रिश्तेदार और चेले रात को 11 बजे के बाद बीजापुर गेस्ट हाउस में जो दुकान सजाते थे और जनता की बोली लगाते थे, उसका क्या?
यह भी कि राजनीति में रिश्ते मौके की नजाकत को देख बनाए जाते हैं और तोड़े जाते हैं। सत्ता के लिए भाई-बहन बनकर राखी का त्योहार मना लेते है, चचा-भतीजा बन जाते हैं तो कोई समघी, भाई, चेला-चेलि बन जाते हैं। ये पब्लिक है सब जानती है लेकिन अभागी है चुप रह जाती है।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]