अंकिता हत्याकांड: यूकेडी की सराहनीय भूमिका, समर शेष है!

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  • प्रमिला, मीनाक्षी और शिवप्रसाद सेमवाल ने उठाए वाजिब सवाल
  • आरती राणा की मेहनत और भावुकता भी अंकिता को दिलाएगी न्याय

अंकिता हत्याकांड को उजागर करने में यूकेडी की भूमिका सराहनीय रही। राज्य गठन के बाद से पहली बार यूकेडी ने फ्रंटफुट पर मोर्चा संभाला। यूकेडी के तमाम नेताओं ने पुरजोर ढंग से मुद्दा उछाला। इसमें यूकेडी नेता शिव प्रसाद सेमवाल की भूमिका अहम रही। इसके अलावा प्रमिला रावत रात-दिन इस मामले में जुटी हुई हैं। मीनाक्षी घिल्ड़ियाल, मोहित डिमरी और सोमेश बुडाकोटी भी सक्रिय नजर आए हैं। पहली बार लगा कि यूकेडी की बुजुर्ग फौज से इतर नई पौध अंकुरित हो रही है। यह यूकेडी के लिए अच्छा संकेत है। यदि जनता के बीच जाएंगे तो यूकेडी की पहचान बनेगी। मीडिया में मीनाक्षी ने अपनी बात प्रमुखता और मुखरता से रखी। ‘आप’ कहीं नजर नहीं आई लेकिन आरती राणा ने बहुत मेहनत की। वह अंकिता के मुद्दे पर भावुक भी हुईं और जगह-जगह दौड़ीं भी। इंद्रेश अपने आप में एक बड़ी पार्टी हैं। उनकी धारदार कलम और बयानों से सत्ता की चूलें हिलती हैं।
अंकिता हत्याकांड को लेकर भी जनता में स्वाभाविक आक्रोश है। लेकिन जिस तरह से कांग्रेस और भाजपा के नेता इस मामले से बचते फिर रहे हैं, उसने कहीं न कहीं जनता के बीच इन नेताओं की पोल खोलने का प्रयास किया है। पहले भर्ती घोटाला, फिर विधानसभा घोटाला और अब अंकिता हत्याकांड से जनता ने देख लिया है कि भाजपा का कांग्रेसीकरण है और भाजपा-कांग्रेस एक सिक्के के दो पहलू।
यह याद रखा जाएगा कि कल जब अंकिता के अंतिम संस्कार के दिन हजारों लोग प्रदेश भर में सड़कों पर थे, श्रीनगर जाम था और हर आंखों में आंसू थे तो कांग्रेस नेता प्रीतम सिंह और कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत आपस में पुष्पगुच्छ भेंट करते हुए खिलखिला रहे थे। धन रावत की वह हंसी दिल को चीर रही थी।
नेताओं का यह आचरण खलता है। जनता को धीरे-धीरे यह एहसास हो रहा है कि भाजपा और कांग्रेस प्रदेश का भला नहीं कर सकते। क्षेत्रीय दल होते तो न प्रदेश की भूमि बिकती और न ही आर्य जैसे दरिंदे यहां प्रश्रय लेते। अंकिता हत्याकांड का केस अब पूरी तरह से धनबल बनाम आम जनता का है। जनता यदि सुस्त पड़ गयी तो विनोद आर्य दौलत से हर चीज खरीद लेगा। मेरा सुझाव है कि अंकिता के परिजनों के लिए एक क्राउड फंडिंग होनी चाहिए ताकि वह इन हैवानों से लड़ते हुए कमजोर न पड़ें। साथ ही वकीलों का एक पैनल भी बने। क्योंकि एक ही वकील बार-बार डेट पर उपलब्ध नहीं हो सकेगा। न ही केस मुफ्त में लड़ सकेगा।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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