अभावग्रस्त नौनिहालों का जीवन संवार रही कनिका

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  • कूड़ा बीनने, भीख मांगने वाले बच्चों को सिखा रही ककहरा
  • गरीब बच्चों का गुरुकुल है काइट्स प्ले स्कूल

जब प्रदेश का युवा भ्रमित है। उसके अंदर न विरोध करने का साहस है और व्यवस्था से लड़ने की ताकत। वह नशे और नफरत की आग की गिरफ्त में है, तो ऐसे समय में देहरादून के शिमला बाईपास चौक के निकट एक किराये के भवन में कनिका विजान उम्मीद का एक छोटा सा दिया रोशन कर भारत के भविष्य को संवारने में जुटी है। कनिका यहां देश की उस भावी पीढ़ी को ज्ञान का ककहरा सिखा रही है जिसके लिए शिक्षा आज के युग में भी असंभव सी है। कनिका भीख मांगने, कूड़ा बीनने, माली, धोबी मजदूरों के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दे रही हैं। शिक्षा भी ऐसी कि आप देख कर दंग रह जाएंगे कि गरीबों के बच्चों को इतनी क्वालिटी एजूकेशन और मोरॉल वैल्यूज की सीख भला कैसे मिल सकती है?
कनिका विजान पिछले चार साल से ऐसे ही स्ट्रीट चिल्ड्रेन को पढ़ा रही है। दिल्ली विश्वविद्यालय के करोड़ीमल कालेज की छात्रा कनिका एक बार दिल्ली से जब देहरादून बस अड्डे पर पहुंची तो भीख मांग रहे बच्चों ने उसके आगे हाथ पसार दिया। कनिका को लगा कि आजादी के इतने साल बाद भी इन बच्चों की हालात ऐसे क्यों कि भीख मांगें? बस उसने ठान लिया कि इन बच्चों को पढ़ाना है ताकि ये जीवन में कुछ आगे बढ़ सकें। कनिका ने माजरा में काइट्स प्ले स्कूल शुरू किया। उसके पिता संजय विजान और मां सुनीता विजान ने साथ दिया। बस अड्डे के भिखारी बच्चों को मोटिवेट किया और उन्हें पढ़ना शुरू किया। भीख मांगने के लिए हाथ पसारने वाले बच्चों के हाथों में किताबें और कलम आ गयी। उसके इस कार्य में बचपन का दोस्त अजय भी जुड़ गया।
आज काइट्स में 34 गरीब बच्चे नि:शुल्क शिक्षा हासिल कर रहे हैं। इनके लिए ड्रेस कापी-किताब और स्कूल का खर्च कहां से करती हो? कनिका कहती है कि पहले पिता जो कि आढ़ती हैं, ने मदद की। बाद में उसने कुछ बच्चों को सारथी के माध्यम से टयूशन पढ़ाना शुरु किया। टयूशन के पैसों से प्ले ग्रुप के बच्चों का खर्च चलाने लगी। अब यह भी कम पड़ने लगा तो उसने सेंट ज्यूडस स्कूल में अंग्रेजी शिक्षिका के तौर पर नौकरी शुरू कर दी। अब वह सुबह सात बजे टयूशन पढ़ाती है और फिर स्कूल जाती है। स्कूल से लौटकर फिर बच्चों को देर शाम तक टयूशन पढ़ाती है जबकि अजय प्ले स्कूल चला रहा है। यहां दो शिक्षिकाओं समेत पांच लोगों को गरीब बच्चों को पढ़ाने और देखभाल के लिए रखा गया है। कनिका दिन भर मेहनत करती है और महीने भर में जो भी कमाती है वह इन बच्चों पर खर्च कर देती है।
कनिका और अजय के इस जज्बे का सलाम।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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