दून कतई स्मार्ट सिटी नहीं है सोनिका जी

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  • रात को तलाशी, दिन में ढूंढ़ी तो नहीं मिली स्मार्ट सिटी
  • पानी-पानी हुआ दून, मजाक बन गया पांच साल का काम

कल शाम लगभग 6 बजे राजपुर रोड के इंद्रलोक होटल में बाघ दिवस के मौके पर आयोजित फोटो प्रदर्शनी के उद्घाटन पर गया था। दून आर्ट काउंसिल और वन्य जीव संस्थान की यह एक अच्छी पहल थी। पीसीएफ रंजन मिश्रा से मानव-वन्य जीव संघर्ष पर लंबी बातचीत भी हुई। खुश था कि कुछ अलग हटकर खबर मिली है। यह खुशी कुछ ही देर में काफूर हो गयी। लगभग साढ़े छह बजे से मेघ बरसने लगे। बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी और मेरा दिल धड़क रहा था कि अब घर कैसे जाऊं? दिन भर कार लेकर दौड़ा तो बारिश नहीं आई लेकिन शाम को स्कूटी लेकर गया तो आफत की बारिश शुरू। पुरानी स्कूटी और दून की पानी से लबालब भरी सड़कें। चिन्ता की बात तो थी ही।
एक घंटे के इंतजार के बाद भी बारिश जारी रही तो तय किया कि जो होगा देखा जाएगा। चलो यहां से। राजपुर रोड मेलटिंग प्वाइंट की रेडलाइन का कर्व पानी में डूब चुका था। यू टर्न लेते ही आधे से अधिक पांव पानी में समा गया। गांधी पार्क रेडलाइट पर भी वही हाल था। आधी से अधिक सड़क पर जलभराव था। ट्रैफिक रेंग रहा था। यहां से घंटाघर पहुंचने में ही दो मिनट की बजाए 15 मिनट लग गये। सेंट थॉमस स्कूल के सामने और प्रिंस चौक पर तो बरसात के बाद तालाब बन जाता है तो स्कूटी के बंद होने का खतरा था। तय किया कि चकराता रोड-तिलक रोड से होते हुए घर जाऊंगा। यहां गलियां हैं। पुरानी हैं, लेकिन बेहतर हैं। कम ही जलभराव था। आखिर लगभग 40 मिनट में घर पहुंचा। जबकि होटल इंद्रलोक से मेरा घर महज 10 मिनट की दूरी पर है।
शनिवार को दिन भर बादल बरसे। यह आफत की बारिश थी। देहरादून के अधिकांश इलाकों में जलभराव की स्थिति हो गयी। कई इलाके जलमग्न थे। हालांकि शाम को थोड़ी राहत मिली और हलकी धूप निकल आई। संभवतः इतना गुस्सा तब नहीं आता, यदि दून पहले सा होता। लेकिन अब तो देहरादून स्मार्ट सिटी है। 2017 से यहां विकास कार्य चल रहे हैं। सीवेज और वाटर लॉगिंग की समस्या का प्राथमिकता के आधार पर निदान होना था। वैसे तो लक्ष्य था कि 2021 में देहरादून पूरी तरह से स्मार्ट सिटी बन जाए। लेकिन देहरादून तो बदहाल सिटी है।
जब बारिश नहीं होती तो भी यहां की सड़कें रुला देती हैं। लोनिवि, पेयजल, संचार और सीवेज के लिए विभागों में तालमेल नहीं है। एक ओर सड़क बिछती है तो दूसरी ओर खुद जाती है। शहर को लेकर कोई योजना नहीं है। जो डीएम है, उसे ही स्मार्ट सिटी का काम थोप दिया जाता है। क्यों भाई? आपके पास अफसर नहीं हैं या सोचने की क्षमता नहीं है। देहरादून में जनसंख्या विस्फोट हो रहा है। मसूरी से देखने पर लगता है कि दिल्ली के मंडावली का डंपिंग जोन है। यह कैसी स्मार्ट सिटी है? यहां न तो ढंग की कनेक्टिविटी है और न ही बुनियादी सुविधाएं। चलो मान लो, कि कोरोना के कारण स्मार्ट सिटी जो कि 2021 में बननी थी, साल-दो साल प्रोजेक्ट लेट भी हो गया, लेकिन आपने जनता को तो बताया ही नहीं कि क्या कर रहे हो? क्या योजना है? नागरिकों की क्या भूमिका होनी चाहिए। बेकार-बेकार सी बातों के लिए लाखों का विज्ञापन जारी कर दिया जाता है लेकिन पिछले पांच साल में देहरादून के लोगों को नहीं बताया कि आखिर ये स्मार्ट सिटी क्या बला है?
मैं स्मार्ट सिटी की हेड सोनिका से यही कहूंगा, कि यह शहर कतई स्मार्ट नहीं है।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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