बड़े मासूम हैं हमारे स्वास्थ्य मंत्री जी, तेज लोग उठा लेते हैं फायदा!

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  • मंत्री जी को रखा अंधेरे में, आईईसी पद फिर हो गयी पांडे की तैनाती
  • भोले-भाले मंत्री बोले, जांच होगी, 11 महीने की नौकरी, जांच रिपोर्ट 12 महीने में आई तो क्या?

उत्तराखंड के अधिकांश मंत्री और अफसर बहुत ही मासूम और नाजुक दिल के हैं। चंद मीठे बोलो से रसगुल्ले की तर्ज पर पिघल जाते हैं। इधर, हेलंग में महिलाओं ने एक मुट्ठी घास के लिए शोर मचाया तो कृषि मंत्री को ये ख्याल आया कि यदि पहाड़ में जैविक खेती होगी तो घास काटने टीएचडीसी के डंपिंग जोन नहीं जाना होगा। सोचा, ओह, पहाड़ की महिला का पहाड़ दर्द। कृषि मंत्री जी से नहीं रहा गया। तय किया कि घास की समस्या का कुछ उपाय करना है। मंत्री जी ने तुरंत टिकट कटाया और पहाड़ का दुख दूर करने चले गये स्वीटजरलैंड, जर्मनी और इटली के दौरे पर। वहां से समाधान लाएंगे। जब केदारनाथ में पर्यटकों की सांसों की डोर टूट रही थी तो हमारे दरियादिल पर्यटन मंत्री दुबई चले गये थे ताकि वहां से आक्सीजन ला सकें। बेचारे मंत्रियों को हमारा जरा सा भी दुख नहीं देखा जाता है। गम दूर करने विदेश की सैर चले जाते हैं।
खैर, अभी बात अपने एक बहुत ही प्यारे और हरदिल अजीज नेता स्वास्थ्य मंत्री जी की। डा. धन सिंह बहुत ही मासूम और विशाल हृदय हैं। वह भी किसी का दिल नहीं दुखा सकते। उपनल वालों को नौकरी दे दी। प्रसव संस्थागत होगा। बूस्टर डॉज समय पर लगेगी। अस्पतालों में मरीजों का इलाज होगा। यानी दूसरों का दिल बिल्कुल नहीं दुखा सकते हैं। यही कारण है शायद की हाल में आईईसी पद से रिटायर हुए जेसी पांडे ने जरा सा दुखड़ा रोया कि फट से उनकी दोबारा संविदा पर नौकरी मिल गयी।
स्वास्थ्य मंत्री जी की मासूमियत तो देखो, इतने बड़े मलाईदार पद पर पांडे जी की तैनाती हो गयी और उन्हें पता हीं नहीं चला। इसे कहते हैं दिये तले अंधेरा। उधर, जेसी पांडे जी कहते हैं कि मंदिर में हूं, भोले को जल चढ़ाने आया हूं। पूरी ईमानदारी से काम किया है। मेरी तैनाती से वो ही लोग जल-भुन रहे हैं जो किसी काम के नहीं। उन्हें मेरे आने से ऐश करने का अवसर नहीं मिलेगा। मेरे खिलाफ शिकायतें करवाई जा रही हैं। मीडिया इसलिए पीछे पड़ा है कि मैंने उनको अंट-शंट एड नहीं दिये। सोचिए, क्या मेरी नियुक्ति बिना स्वास्थ्य मंत्री की सहमति से हुई होगी?
इस मामले में स्वास्थ्य मंत्री जी ने जांच रिपोर्ट मांगी है। अब जांच-जांच का खेल चलेगा। ठीक वैसे ही जैसे डा. निधि उनियाल प्रकरण की जांच चली। 15 दिन की जांच अब तक पूरी नहीं हुई। जेसी पांडे जी को 11 महीने की नौकरी है, हो सकता है कि जांच टीम अपनी रिपोर्ट 12 महीने में दे।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

जब एक मुट्ठी घास पर भी हमारा हक नहीं, तो बताओ, हमारा हक कहां है?

 

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