कोयले के ढेर में कांग्रेस को आखिर मिल ही गया ‘हीरा’

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  • पहाड़ के एक साधारण युवा की संघर्ष दास्तां का प्रतीक है गणेश
  • दस रुपये में बिक जाते हैं नेता, इस नेता ने 25 करोड़ ठुकरा दिए

2016. एक नेताजी कांग्रेस विधायक गणेश गोदियाल के घर आए। देख, तू मेरा खास सहयोगी है, बाकी 15 में बिक रहे हैं। ये 15 करोड़ रुपये हैं और टेबल पर रख दिए। कहा, ये रख ले, 10 करोड़ तेरे चैंबूर वाले एकाउंट में डलवा दूंगा। दल बदल ले। गणेश ठहरा आम पहाड़ी। न डिगा, न बिका। परिणाम, चार साल से गर्दिश में था। आईटी की रडार पर आया। 96 लाख की जुर्माना किया गया। छापे पड़े और परेशान किया गया। जांच में कुछ नहीं निकला। अब जब कांग्रेस मर रही है तो तब उसे गणेश की याद आई। गणेश को अब प्रदेश की कमान सौंपी गयी है। देर आयद, दुरस्त आयद।
गणेश ने पलायन का यातना सही। गांव की पगडंडी से महानगरों की गलियों की खाक छानी। कहते हैं कि मायानगरी किसी का भाग बदल देती है सो गणेश के साथ भी यही हुआ। जीवन यापन की तलाश में मुंबई पहुंचा गणेश चैंबूर इलाके में सड़क किनारे केले बेचने लगा। कुछ पैसे कमाए तो गांव में दूध की डेयरी खोल दी। जीवन संघर्ष में किस्मत ने साथ दिया और लोकप्रियता मिली तो जनता ने नेता बना दिया। विधायक बनाया। एक संघर्षशील और ईमानदार नेता को कांग्रेस में तवज्जो मिली। यह बड़ी बात है। अब देखना है कि जलकुकड़े नेता उसे काम भी करने देते हैं या नहीं।
नोट:एक इंटरव्यू में गणेश गोदियाल से बातचीत पर आधारित।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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