- कांग्रेस का बेड़ागर्क करने पर तुले हैं दोनों नेता
- हरदा के पास अपना कुछ नहीं, प्रीतम के पास पिता का सबकुछ
विधानसभा चुनाव में हार और चम्पावत उपचुनाव में ऐतिहासिक बेइज्जती हासिल करने के बावजूद कांग्रेस की अंदरूनी कलह थम नहीं रही। उधर, हैदराबाद में भाजपा उत्तराखंड में अगले 25 साल का रोडमैप लेकर आ रही है। कमजोर क्षेत्रों में बूथस्तर तक पार्टी को मजबूत करने की बात कर रही है। इधर, कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत और प्रीतम सिंह आपसी जंग लड़ रहे हैं। हार का ठीकरा एक-दूसरे पर फोड़ रहे हैं। दोनों में जरा भी नैतिकता नहीं है कि स्वीकार करें कि हार उन दोनों की वजह से हुई।
पूर्व सीएम हरीश रावत बुढ़ापे की दहलीज पार कर चुके हैं। इसके बावजूद राजनीति से मोह और दूसरों पर दोष मढ़ने का चस्का कम नहीं हो रहा है। शायद हरदा कुर्सी से चिपककर वैतरणी पार करना चाहते हैं। सब जानते हैं कि हरीश रावत ने जीवन भर एक विधानसभा सीट भी नहीं कमाई। हमेशा दूसरों की सीट पर ही कब्जा किया। कांग्रेस के नाम की खाई और अपनी पहचान बनाई। उधर, यदि प्रीतम के राजनीतिक जीवन का आकलन किया जाए तो नौ महीने पहले तक उन्हें प्रदेश का आम नागरिक नहीं जानता था। उनकी पहचान चकराता तक सीमित थी। प्रदेश अध्यक्ष होने के बावजूद वह अधिकांश समय चकराता से बाहर निकले ही नहीं। मेरा दावा है कि आज भी प्रदेशवासियों को उनकी फोटो दिखा कर पूछा जाए कि ये शख्स कौन है तो 75 प्रतिशत लोग प्रीतम सिंह को पहचान नहीं पाएंगे। इसके बावजूद ये शख्स बड़ा सीना चौड़ा कर कांग्रेस और प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने का दावा करता है तो आश्चर्य की बात है।
चकराता के विकास की बात बेमानी है। प्रीतम सिंह ने अपने पिता की बदौलत ही यह सीट हासिल की। प्रीतम को यह सच्चाई स्वीकार करनी चाहिए कि यदि चकराता के लोगों के पास यह संदेश होता कि कांग्रेस सत्ता में नहीं आएगी तो इस बार प्रीतम की हार तय थी। कारण, चकराता में आज भी 20 साल पुरानी समस्याएं हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं के नाम पर चकराता आज भी बदहाल है। ओबीसी क्षेत्र होने के बावजूद अब वहां के लोगों को रोजगार भी नहीं मिल रहा है। 22 स्टेब्लिश्डमेंट एक्ट के कारण पर्यटन को भी बढ़ावा नहीं मिल रहा। क्या प्रीतम चकराता के विकास को लेकर श्वेतपत्र जारी कर सकेंगे? बताएंगे कि पिछले 20 साल में उन्होंने चकराता के लिए क्या किया?
दरअसल, हरदा और प्रीतम कांग्रेस को दीमक की तर्ज पर खा रहे हैं। बेहतर है कि कांग्रेसी इन दोनों नेताओं का बहिष्कार करें और नया नेतृत्व चुने। वरना, कांग्रेस और रामलाल हलवाई की पार्टी में कोई अंतर नहीं रहेगा। जनता ने कांग्रेस को 19 विधायक दिये हैं। ये किसी भी सूरत में उत्तराखंड के लिए कम विधायक नहीं हैं। मुद्दों पर काम करेंगे तो पार्टी का जनाधार बढ़ेगा। आपस में लड़ेंगे तो जनता का रहा-सहा विश्वास भी गंवा देंगे। कांग्रेसियो इन दोनों नेताओं से सावधान रहो।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]