- अस्पतालों में इलाज को तरस रहे मरीज
- स्वास्थ्य प्रबंधन के लिए हो अलग कैडर की व्यवस्था
कोरोनेशन अस्पताल के सीनियर फिजिशियन डा. एन एस बिष्ट का बोरिया बिस्तर जल्द ही बंधने वाला है। क्योंकि उन्होंने सवाल किया कि मरीजों को सरकारी अस्पतालों में दवाएं नहीं मिल रही हैं। जब दवाएं नहीं मिल रही है तो स्वास्थ्य निदेशालय में धरती के भगवानों का इतना ढेर क्यों है? भले ही प्रदेश में डाक्टरों की भारी कमी हो, लेकिन अपने स्वास्थ्य निदेशालय में 36 में से 30 डाक्टर जमे बैठे हैं। एक से एक धुरंधर विशेषज्ञ डाक्टर। मैं इसका विरोध नहीं कर रहा हूं कि ऐसे सीनियर डाक्टर का सम्मान नहीं होना चाहिए, लेकिन सच और जरूरत यह है कि इन वरिष्ठ डाक्टरों की व्यवस्था से कहीं अधिक मरीजों को जरूरत है। इन डाक्टरों ने मरीजों की सेवा की शपथ ली है। इन्हें धरती का भगवान कहा जाता है और भगवान मरीजों को उनके हाल पर छोड़ कर एसी कमरों में बैठे गप्प लड़ा रहे हैं कि स्वास्थ्य सुविधाएं कैसे बढ़े या कोरोना की नई लहर से कैसे बचे?
स्वास्थ्य मंत्री यदि पीएचडी धारक डाक्टर हो सकता है तो स्वास्थ्य निदेशालय में बिना डाक्टर वाला हेल्थ कैडर भी चला सकता है। पीसीएस टाइप हेल्थ कैडर बन सकता है। डाक्टरों को मरीज ही देखने चाहिए। जानकारी के अनुसार निदेशालय में संहायक निदेशक के 8 पद स्वीकृत हैं और 15 डाक्टर इस पर तैनात हैं। गजब हाल है। इसी तरह से तीन-तीन निदेशक और अपर निदेशक भी हैं। ये सभी वरिष्ठ डाक्टर हैं।
दो दिन पहले ही मैंने लिखा था कि हल्द्वानी मेडिकल कालेज के फिजियोलॉजी डिपार्टमेंट हेड डा. एएन सिन्हा के मूल विभाग में तैनाती आर्डर के बावजूद वह आज तक हल्द्वानी नहीं गये। आखिर डा. सिन्हा यहां क्या कर रहे हैं? जबकि उन्हें वेतन मेडिकल कालेज से ही मिल रहा है। ऐसे ही कई अन्य डाक्टर भी होंगे। भाई डाक्टरों, क्यों आए थे इस पेशे में? मरीजों की सेवा करने। तो करो। नहीं तो रिटायर हो जाओ। वीआरएस का आप्शन तो है ही। प्राइवेट में अधिक पैसे मिलेंगे। भगवान के लिए अपना काम करो या नौकरी छोड़ दो। प्रदेश के मरीजों को इलाज और दवाई की जरूरत है। वह उन्हें दो।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]