- क्या गंगोत्री का इतिहास लेगा इस बार करवट?
- विजयपाल सजवाण बना पाएंगे त्रिकोणीय मुकाबला
एक फौजी देश की सीमाओं की निगहबानी कर जब सिविल लाइफ में आता है तो अक्सर ठगा जाता है। कारण, वह सीधा और सपाट हुक्म देने या मानने वाला होता है। उसे अपने दुश्मन का पता होता है। एक गोली, एक शिकार का लक्ष्य होता है। आमने-सामने की लड़ाई। वही, फौजी जब सिविल लाइफ में समाज के बीच आता है तो उसे यह एहसास नहीं होता है कि कौन दुश्मन है और कौन दोस्त। उस पर तुर्रा यह कि सीधे राजनीति में उतर जाएं। राजनीति यानी दलदल। जितना घंसों, गहराई कम नहीं होती। पूर्व कर्नल अजय कोठियाल पर भी यह बात लागू होती है। हालांकि यह कर्नल कुछ अधिक ही शरारती और दूसरे किस्म का है। देहरादून के डीवीए कालेज और केदारनाथ आपदा के बाद कर्नल ने राजनीति के कई पैतरे सीख लिए हैं। कर्नल की नीयत साफ है लेकिन राजनीतिक दलदल में कर्नल क्या अपने अस्तित्व को बचा सकेंगे? यह यक्ष प्रश्न है। क्या मां गंगा ने कर्नल को गंगोत्री में बुलाया है?
आम आदमी पार्टी ने आज विधिवत तौर पर कर्नल अजय कोठियाल को गंगोत्री उपचुनाव के लिए अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। शर्त यह है कि यदि सीएम तीरथ सिंह रावत वहां से लड़ते हैं तो? टीम कोठियाल इन दिनों गंगोत्री में डेरा डाले हुई है। उत्तरकाशी से कर्नल का पुराना नाता है। 2013 में जब केदारनाथ आपदा आयी थी तो वो निम के प्रधानाचार्य थे। कर्नल कोठियाल की टीम ने गंगोत्री में फंसे 6 हजार से भी अधिक तीर्थयात्रियों को सुरक्षित बचाया था। आपदा के समय इसी कुशल प्रबंधन को देखते हुए उन्हें केदारनाथ पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी।
पिछले 65 साल में गंगोत्री का इतिहास रहा है कि जो भी यहां से जीतता है उसकी सरकार बनती है। 2002 और 2012 में यहां से कांग्रेस के विजयपाल सजवाण जीते। तो 2007 और 2017 में गोपाल सिंह रावत। गोपाल सिंह रावत के निधन के बाद यहां उपचुनाव होने की संभावना है। लगभग 82 हजार मतदाताओं वाली गंगोत्री सीट से संभवतः मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत किस्मत अजमाएंगे। सरकार उनकी है। 2017 में गोपाल सिंह रावत यहां से 7436 वोटों से जीते थे। यानी जीत का मार्जन भी अधिक हैं। इसके बावजूद कर्नल अजय कोठियाल ने यहां से ताल ठोक दिया है। कांग्रेस के पास विजयपाल सजवाण का विकल्प नहीं है। दो बाहरी उम्मीदवारों के बीच में स्थानीय विजयपाल क्या मुकाबले को त्रिकोणीय बना पाएंगे। यह भी एक बड़ा सवाल है।
यदि देशभक्ति, ज्ञान, प्रबंधन, विजन और टीम लीडरशिप की बात करें तो कर्नल अजय कोठियाल का कोई सानी नहीं है। इसकी तुलना में तीरथ सिंह रावत और विजयपाल सजवाण कहीं नहीं ठहरेंगे। लेकिन राजनीति में कर्नल अभी कच्चे खिलाड़ी हैं। उन्हें वो दांव-पेंच नहीं आते, जिसकी बदौलत तीरथ सत्ता के शीर्ष पर पहुंच गये या सजवाण दो बार विधायक बन गये। तीरथ और सजवाण के साथ पूरा कैडर है। संसाधन हैं, सरकार है और तमाम तामझाम। साथ है भाजपा की मजबूत आईटी सेल। जो लगातार साबित करने में जुटी हुई है कि आम आदमी पार्टी उत्तराखंड विरोधी है। मुस्लिम कार्ड भी खेला जा रहा है और अब और तेजी से खेला जाएगा। आप के साथ ही कर्नल की देशभक्ति पर सवाल उठेंगे? जबकि यह सच है कि प्रदेश की जनता भाजपा और कांग्रेस से त्रस्त है। जनता को बदलाव चाहिए, लेकिन उपचुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तय नहीं है। लेकिन यह संभव है कि गंगोत्री का इतिहास इस बार बदल जाएं। यह भी सच है कि कर्नल के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है और जो मिलेगा वो उनके लिए कुछ हासिल ही होगा।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]