- दोनों की हो रही भर्ती मामले में फजीहत
- प्रदेश की माली हालात को लेकर श्वेत पत्र जारी करे सीएम धामी
सीएम धामी ने भर्ती घोटालों से जनता का ध्यान भटकाने के लिए नये जिलों को शिगूफा छेड़ दिया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम हरीश रावत ने उनके सुर में सुर मिलाते हुए कहा है कि कांग्रेस ने चार नये जिले बनाने के मुद्दे को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया था। जबकि भाजपा ने 2011 में ही चार नये जिले डीडीहाट, रानीखेत, कोटद्वार और यमुनोत्री को जिला बनाने के शासनादेश तक जारी कर दिये थे। 2017 से 22 तक भाजपा सरकार रही, तब क्यों नहीं बनाए गये जिले?
दूसरी बात, प्रदेश 75 हजार करोड़ के कर्ज में है। कर्मचारियों को वेतन के लिए हर महीने आरबीआई से एक हजार करोड़ का कर्ज लिया जा रहा है। चारों ओर हा-हाकार है। महंगाई की मार है। आशा वर्कर, भोजनमाता, आंगनबाड़ी वर्कर संविदा पर कार्यरत कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिल रहा है।
राज्य सरकार के ही बजट दस्तावेजों से रिपोर्ट में किए गया विश्लेषण बताता है कि 2021-22 तक राज्य सरकार पर 73,477.72 करोड़ रुपये का कर्ज था। पांचवें राज्य वित्त आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले पांच वर्ष में अनुमान है कि राज्य सरकार अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए 54,496 करोड़ रुपये का और कर्ज ले सकती है। रिपोर्ट के अनुसार, जीएसटी से अगले पांच साल में करीब 6720 करोड़ रुपये से 10574 करोड़ रुपये तक राजस्व प्राप्त होने का अनुमान लगाया गया है। जबकि इस अवधि में कर्ज का अनुमान प्रति वर्ष 8982 करोड़ से लेकर 12994 करोड़ रुपये है। यानी उत्तराखंड पर आने वाले तीन साल में ही एक लाख करोड़ के पार कर्ज हो जाएगा।
साफ है कि विधानसभा भर्ती घोटाला अब कांग्रेस और भाजपा दोनों के गले की फांस बन गया है। ऐसे में सीएम धामी ने नये जिलो का शिगूफा तुरुप के इक्के के तौर पर चला है। चूंकि हरीश रावत उत्तराखंड में भ्रष्टाचार के जनक माने जाते हैं, कुंजवाल उसकी एक छोटी सी मिसाल है तो इस तूफान को शांत करने के लिए दोनों आपस में मिल गये हैं। मेरा सवाल सीएम धामी से है कि यदि वह 2025 में उत्तराखंड को अग्रणी राज्य बनाना चाहते हैं तो इसका रोड मैप सार्वजनिक करे। दूसरा, नये जिले बनाना चाहते हैं तो प्रदेश की माली हालात पर श्वेत पत्र जारी करें। देखें, हमारे सरकारी की तिजारी में कौन सा सोना भरा हुआ है?
हां यह तभी संभव हो सकता है कि भाजपा और कांग्रेस के प्रमुख नेता अपनी काली कमाई का एक-एक प्रतिशत राज्य के लिए दान कर दें। लेकिन यदि इन नेताओं को दान ही करना था तो काली कमाई करते ही क्यों?
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]