- विजनरी नेता, विदेश से ले आते हैं कोई न कोई नया आइडिया
- अंडर द स्काई के बाद अब पैरों की मालिश का बेजोड़ रोजगार
कसम से, हम उत्तराखंड़ियों को अपने लोगों की कद्र ही नहीं। हमारे पास सतपाल महाराज जैसा विजनरी नेता है, लेकिन हम फटी जींस और गाय आक्सीजन छोड़ती है या गगलोड़े से इलाज वालों को सत्ता के शीर्ष पर बिठा देते हैं। प्रदेश में अधिकांश नेता यूपी से कापी करते हैं, मसलन कमीशन कैसे खाना है, जेई आएं या एक्सईएन, उससे पूछना है कुछ लाया है क्या? भाई-भतीजावाद करना है, ठेके अपने आदमियों को देना है, आदि-आदि। लेकिन महाराज ऐसे नेता हैं जो बहुत दूर की सोचते हैं यानी विजनरी है। ऐसे ही कोई उनकी तरह महाराज नहीं बन जाता। हजारों भक्त हैं, मजाल क्या है कि जरा भी घमंड हो। बहुत ही विनम्र हैं, जनहित की सोचते हैं। इसका उदाहरण हाल में उनका बयान है कि अधिकांश ठेके पार्टी कार्यकर्ताओं को देने की बात की। अन्य नेता अपने चेले या परिजनों को ठेके देते हैं। बड़े लोग, बड़ी बात।
महाराज जी एक बहुत बड़ी खासियत है कि जब भी वो विदेश घूमने जाते हैं या टूर पर जाते हैं, वहां जो भी अच्छी बात लगती है, उसे उत्तराखंड में अपनाने की तैयारी करते हैं। ये तो पहाड़ियों की ऐसी किस्मत कि उनके आइडिया अपनाने की जगह उन पर टिप्पणियां करते हैं। एक दो साल पहले वो विदेश घूमकर आए तो अंडर द स्काई योजना लाए। इसके तहत किसी पहाड़ी पर खुले आकाश के नीचे पर्यटक को ठहराने और सुलाने की बात थी। योजना जबरदस्त थी, लेकिन कमबख्त आलोचकों ने कहा, यदि सैलानी को गुलदार या बाघ उठाकर ले गया तो? बस, योजना ठप हो गयी।
अब सिंगापुर की तर्ज पर थाई या पैरों की मसाज की योजनाएं लाएं हैं। क्या बुरा है। पकौड़े तलना, नून पीसना रोजगार है तो पैरों की मसाज क्या बुरा है? महाराज जी जानते हैं कि उनके भक्त अब बूढ़े हो चुके हैं और उन्हें महाराज जी को दंडवत प्रणाम करने में कैसी दिक्कत आती है? कोरोना के बाद तो दंडवत प्रणाम करना और मुश्किल हो गया। हड्डियां कमजोर हो गयी और झुकने में दिक्कत होती है। दंडवत प्रणाम के लिए पैरों की मसाज जरूरी है। समझते ही नहीं हमारे लोग। इस प्रदेश का विकास इसलिए नहीं हो पाया कि यहां कुछ काम करने से पहले ही उसमें सौ खामियां निकाल दी जाती हैं। यही कारण है कि प्रदेश में महाराज जैसे विजनरी नेता की भी कद्र नहीं।
मैंने अपने कई ज्योतिष दोस्तों से पूछा कि महाराज सीएम क्यों नहीं बन सके। उनका कहना है कि यदि महाराज रावत होते तो कब के सीएम बन गये होते। महाराज की स्पेलिंग में जे की बजाए जेड लगाने से भी कुछ संभव है। सुना है कि महाराज की स्पेलिंग भी जेड कर दी गयी है। संवैधानिक संकट के काल में हो सकता है कि हाईकमान को अपनी गलती का एहसास हो जाए।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]
“नमूने” को बक्श कर जिंदगी में आगे बढ़ना शेष है, उसकी इन्तहाई शराफत का एक और नमूना पेश है!