- अब एक ही सूचना आयुक्त, जेपी ममगाईं भी रिटायर
- आरटीआई के दो हजार से भी अधिक मामले हैं सुनवाई के लिए लंबित
सूचना आयुक्त जेपी ममगाईं कल रिटायर हो गये। नियमानुसार उन्होंने अपना पदभार छोड़ दिया। अब केवल एक ही सूचना आयुक्त सीएस नपलच्याल हैं। नियमानुसार डबल बैंच में सुनवाई हो सकती है। इससे पहले पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह भी पालीटिकल एंबीशन के शिकार हो गये। उन्हें तीरथ सरकार में सीएम का एडवाइजर बनाया था। इस कारण मुख्य सूचना आयुक्त के पद से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन तीरथ सरकार नहीं चली तो श़त्रुध्न सिंह की छब्बे जी बनने के चक्कर में दूबे जी बनकर रह गये। हालांकि सुना है कि उन्हें किसी कमेटी का चेयरमैन बना दिया गया है। कोरोना काल में सुनवाई नहीं हुई तो लंबित मामले दो हजार से भी अधिक पहुंच गये। नियमानुसार आयोग में एक आयुक्त सुनवाई नहीं कर सकता है इसलिए सुनवाई ठप हो जाएगी।
राज्य सरकार लोकायुक्त को लेकर उदासीन है और सूचना आयोग को लेकर भी चुप्पी साधे है। जब मुख्य सूचना आयुक्त शत्रुघ्न सिंह ने इस्तीफा दिया था तो विकल्प तलाशा जाना चाहिए था। लेकिन सूचनाएं चूंकि सरकार और डिपार्टमेंट से संबंधित होती हैं तो न सरकार ने सुध ली और न ही नौकरशाहों ने। यदि नये आयुक्त की समय पर नियुक्ति नहीं हुई तो आचार संहिता लग जाएगी। यदि तैनाती हो भी गयी तो नये आयुक्त को सीखने में ही पांच-छह महीने लग जाते हैं। कुल मिलाकर सूचना आयोग का काम भी बाधित हो गया। मजेदार बात है कि आयोग की वेबसाइट भी नहीं चल रही है।
वैसे भी सूचना आयोग पर पूर्व नौकरशाहों की कब्जा रहा है। 2005 से लेकर अब तक 90 प्रतिशत आईएएस को सूचना आयुक्त बनाया गया है। एकमात्र पत्रकार प्रभात डबराल, दो एडवोकेट अनिल शर्मा और नौटियाल और एक आईआरएस यानी जेपी ममगाईं की तैनाती हुई है। विडम्बना यह है कि यह प्रदेश महिलाओं ने बनाया लेकिन आज तक एक भी महिला सूचना आयुक्त नहीं बनी और न ही देशभक्ति और राष्ट्रवाद की दुहाई देने वाली भाजपा ने किसी पूर्व फौजी को यह जिम्मेदारी सौंपी है। न ही किसी शिक्षाविद को ही सूचना आयुक्त बनाया है।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]
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