- वक्त सबका आता है संपादक जी, अब क्या करोगे?
- संभलो, अब भी नहीं चेते तो आईना में अपना भोथरा चेहरा देखोगे।
सीएम धामी ने अपना मीडिया कार्डिनेटर पत्रकार हरीश कोठारी को बनाया है। हरीश कोठारी को बधाई। पत्रकार हरीश कोठारी जीवन में कभी किसी बड़े पद पर नहीं रहे। बताया जाता है कि उनका जीवन एक स्ट्रिंगर के तौर पर ही बीता। यानी संपादकीय विभाग की सबसे छोटी इकाई। तरक्की का अवसर सबको मिलता है और वक्त सभी का आता है। आज हरीश कोठारी का वक्त है। अचानक ही वो सभी संपादकों के आका बन गये हैं और सभी संपादक और नामी-गिरामी पत्रकार उनकी मिजाजपुर्सी करेंगे उनके आगे गिड़गिड़ाएंगे, उनके कुर्सी पर रहने तक। विज्ञापन चाहिए तो करना ही होगा। नेता समझ चुके हैं कि पत्रकारों की औकात चंद रुपल्ली का विज्ञापन है। विज्ञापन दो और कुछ भी छपवा लो।
मैं पत्रकार हरीश कोठारी का विरोधी नहीं हूं, लेकिन मैं मेनस्ट्रीम मीडिया के संपादकों को और उन बड़े पत्रकारों को चेतावनी दे रहा हूं कि आखिर कितना नीचे गिरोगे? किस-किस की चाटुकारिता कर पेट भरोगे? यह जीना भी क्या जीना है? दो वक्त की रोटी के लिए जनता के साथ विश्वासघात करते हो। झूठ को सच बना कर परोस रहे हो। जब जनता के हित की बात नहीं करोगे तो सत्ता तुमसे क्यों डरेगी? तुम्हें यूं ही आईना दिखाया जाता रहेगा।
कारपोरेट जर्नलिज्म की मजबूरियां हैं, लेकिन सच को झूठ बनाना कहां तक उचित है? सरकार कुछ भी दावा करती है तो उसे हूबहू छाप देते हो। छापो, लेकिन एक कालम यह भी तो बताओ कि सच क्या है। सच्ची रिपोर्टिंग नहीं करते हो। आज भले ही कट जाएगा लेकिन कल जब पद पर नहीं रहोगे तो जनता किस रूप में याद करेगी तुम्हें? जागो संपादकों, अपनी आत्मा कुरेदो। जनहित की बात करो वरना सरकार तुम्हें यो ही आईना दिखाती रहेगी और उसमें तुम्हारा चेहरा भोथरा ही नजर आएगा।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]