- गांवों में वोट के आधार पर होता है विकास: डांगी
- एक व्यक्ति को भी उतनी ही बुनियादी सुविधाओं की जरूरत, जितने पूरे गांव को
कल विचार एक नई सोच के आफिस में पौड़ी के ग्रामीण पत्रकार जगमोहन डांगी से मिला। जगमोहन को निमोनिया की शिकायत थी। सतपुली में हंस फांउडेशन के अस्पताल के डाक्टरों ने उनका इलाज कम किया, टेस्ट अधिक कर दिये। निमोनिया के टेस्ट 4500 के हुए और पत्रकार के तौर पर 1500 की छूट दी। इसके बावजूद जब स्वस्थ नहीं हुए तो देहरादून आना पड़ा। यह पहाड़ में स्वास्थ्य सुविधाओं का जीता-जागता उदाहरण है।
जगमोहन डांगी एक गांव से लेकर पौड़ी मुख्यालय तक भटकते हैं। ग्रामीणों की समस्याओं को उठाते हैं। उनके अनुसार नेता और अफसर गांवों के विकास को वोट के नजरिए से देखते हैं। वह कहते हैं एक व्यक्ति को गांव में रहने के लिए उतनी ही बुनियादी सुविधाओं की जरूरत होती है जितनी की पूरे गांव को। वह कहते हैं आज भी पहाड़ के गांवों में पानी और सड़क समस्याएं हैं। स्वास्थ्य केंद्रों के हालात बदहाल हैं। सरकारी योजनाएं गरीबों तक नहीं पहुंचती या यूं कहें कि गरीब उन योजनाओं तक नहीं पहुंचा पाता। गौरा कन्याधन जैसी योजनाओं को पाने के लिए ग्रामीणों को चप्पल घिसनी पड़ती है, क्योंकि पचासों नियमों की खानापूर्ति और कागजों का पेट भरना आसान नहीं।
मीडिया ग्रामीण पत्रकारों को न्यूज सोर्स मानता है, उनकी मुश्किलें आसान नहीं। यदि कल्जीखाल से पौड़ी जाना है तो किराये में ही 100 रुपये से अधिक खर्च हो जाते हैं। पगार के नाम पर ग्रामीण पत्रकारों को मानदेय मिलता है जो कि अधिकतम 5000 तक है। खूब मेहनत करो, मीलों की दूरी नापो, लेकिन अखबार में सिंगल कालम के लिए भी डेस्क पर सिफारिश करो। सभी पुरस्कार और योजनाएं शहरी पत्रकारों के लिए हैं। सूचना वाले भी भेदभाव करते हैं। उन्हें लगता है कि ग्रामीण पत्रकारों का कोई अस्तित्व नहीं है। जबकि सरकार की योजनाओं को गांव तक पहुंचाने और सरकार तक गांव की खबर पहुंचाने का सबसे बड़ा माध्यम तो ग्रामीण पत्रकार है।
आजादी के बाद पत्रकारिता जगत के सामने तमाम चुनौतियां आयी हैं, जिससे पत्रकारिता के उद्देश्य में भी बदलाव आया है। ग्रामीण पत्रकारिता सदैव ही सीमित संसाधनों के साथ विभिन्न चुनौतियों से भरा रहा है। सबसे बड़ी चुनौती अनियमित तनख्वाह है। ईमानदारी से कार्य करने वाले ग्रामीण पत्रकारों को कई बार दो वक्त का भोजना जुटा पाना भी मुश्किल हो जाता है, यही वजह है कि ग्रामीण अंचल में जो भी पत्रकारिता से जुड़ा है उसकी कोशिश रहती है कि उसके पास आमदनी का दूसरा जरिया रहे ताकि उसके परिवार का खर्च आसानी से चल सके। सुरक्षा एक महत्वपूर्ण विषय है जो ग्रामीण पत्रकारिता की चुनौतियों को बढ़ा देता है। ग्रामीण पत्रकार अपनी पूरी क्षमता और ऊर्जा के साथ समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अशिक्षा सहित आम जन की आवाज को उठाता रहता है। आज जरूरत है ग्रामीण पत्रकार को आर्थिक रूप से स्वावलम्बी बनाने की ताकि जब वह रिपोर्टिंग के लिए निकले तो उसके सामने परिवार को पालने की चिंता न हो।
ग्रामीण पत्रकारों के लिए सामाजिक सुरक्षा और सुविधाएं नगण्य हैं। सरकार को ग्रामीण पत्रकारों के लिए भी उचित सुविधाएं और उन्हें सुरक्षा उपलब्ध करानी चाहिए।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]