- छोटी सी ख्वाहिश हो जाएं पूरी तो पदकों से भर जाए प्रदेश की झोली
- चमोली की बेटी मानसी क्यों नहीं बनती ब्रांड एमबेस्डर?
कल किसी काम से सीआईएमएस के चेयरमैन ललित जोशी से मिलने के लिए उनके संस्थान गया। वहां देखा उत्तराखंड की प्रतिभावान बेटी मानसी नेगी बैठी थी। चेयरमैन ललित जोशी ने उसका सम्मान किया और एक छोटी सी धनराशि उसे मदद स्वरूप दी। मैंने मानसी को नेशनल गेम्स में 10 किलोमीटर वाक रेस में गोल्ड मेडल जीतने और नेशनल रिकार्ड बनाने की शुभकामना दीं। इसके अलावा भी उसने नेशनल लेवल पर कई पदक हासिल किये हैं।
मानसी एक प्यारी सी बेटी है। गोरी-चिट्टी, प्यारी सी हंसी के साथ चेहरे पर कुछ कर गुजरने का दृढ़ संकल्प लिये हुए। बातें भी बहुत मीठी करती है। छोटी सी उम्र में बड़ा धमाल किया है। कौन सोच सकता है कि पहाड़ की पगडंडी पर हिरनी सी कुलाचे मारने वाली यह बेटी देश के क्षितिज पर चमकेगी? सीमांत चमोली जिले के दशोली प्रखंड के मजोठी गांव की इस बेटी ने अपनी अथक मेहनत, हौसले और कुछ कर गुजरने की इच्छा शक्ति से एक मुकाम हासिल किया है।
मैंने यूं ही मानसी से पूछ लिया कि सीएम ने जो 3 लाख रुपये देने की घोषणा की, क्या वह मिल गये? वह मुस्कराते हुए बोली, मिल जाएंगे। साफ है कि समय पर नहीं मिलेंगे। सरकारी पचड़े हैं। समयसीमा होती नहीं। मानसी के पिता नहीं हैं और भाई पढ़ रहा है। मां गृहणी है। यानी आर्थिक संकट है। स्कूल खेलों इंडिया दस हजार रुपये महीना देते हैं, लेकिन यह राशि नाकाफी है। इसमें भी झोल है।
मैंने मानसी से पूछा, इतनी उपलब्धि पर तो सरकारी नौकरी मिल जाती। तुम्हें सीएम ने नौकरी का आफर नहीं दिया। उसने सिर इनकार में हिला दिया।
दरअसल, हमारे पहाड़ की यही बदनसीबी है कि यहां की प्रतिभाओं को मंच नहीं मिलता। सरकार ने नई खेल नीति बनाई है। इस नीति में खिलाड़ियों को नौकरी की बात भी होनी चाहिए थी। भले ही वह कांस्टेबल की नौकरी हो गया क्लर्क की। हरियाणा, रेलवे, पंजाब में खिलाड़ियों को तुरंत सरकारी विभागों में नौकरियां मिल जाती हैं। लेकिन हमारे यहां ब्रांड एमबेस्डर बनते हैं तो महेंद्र सिंह धौनी, प्रसून जोशी या हेमामालिनी जैसे लोग। जिन्हें हमारी सरकार की किसी प्रोत्साहन की जरूरत ही नहीं।
मैंने मानसी से पूछा, कोई स्पांसरशिप मिली है। किसी डाइट प्रोडेक्ट का नाम बताया कि खाने पर कुछ छूट देते हैं। मानसी के वाक रेस के जूते विदेश से आते हैं। एक जोड़ी लगभग 12 हजार की। एक जोड़ी तीन महीने ही चलती है। यानी साल में चार जोड़ी जूते चाहिए होते हैं। उसे जूतों का स्पांसर चाहिए। प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए आने-जाने पर भी हर साल एक लाख तक खर्च होता है। डाइट आदि पर भी। सीआईएमएस के चेयरमैन ललित जोशी ने उसकी हरसंभव मदद करने का आश्वासन दिया है।
मानसी अब फरवरी माह में रांची में आयोजित होने वाली राष्ट्रीय सीनियर एथेलेटिक्स प्रतियोगिता में भाग लेने की तैयारी कर रही है। मैं चाहता हूं कि कुछ और लोग मानसी को स्पांसरशिप देने के लिए आगे आएं। सरकार से तो उम्मीद करना बेकार है। सरकार केवल एवार्ड मिलने पर श्रेय लेना जानती है और कुछ नहीं।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]
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