- हंगामा है क्यों बरपा, जो थोड़ा सा विरोध हो गया
- पापी का केदारनाथ धाम में दर्शन वर्जित हैं शास्त्र सम्मत विरोध किया
- यदि प्रायश्चित करना था तो तीर्थपुरोहितों को साथ लेते त्रिवेंद्र: विनोद शुक्ला
पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत यानी मेरे त्रिवेंद्र चचा को तीर्थपुरोहितों ने बाबा केदार के दर्शन नहीं करने दिये। ऐसा कहा जा रहा है कि एक तीर्थपुरोहित ने त्रिवेंद्र चचा के सिर में भी डंडा मारा। इसके बाद चचा के विरोधी और समर्थकों में खूब जंग चल रही है, लेकिन तब जब देवस्थानम बोर्ड बना तो मीडिया भी चुप और समर्थक भी। तीर्थपुरोहितों के हक-हकूकों का समर्थन पर न कोई धरना हुआ और न किसी को पीड़ा। सरकार की नजरें तीर्थपुरोहितों की कमाई और वहां के व्यवसाय पर हैं। केदारनाथ धाम और बदरीनाथ धाम में सारे ठेके बाहरी कंपनियों को मिलने जा रहे हैं। बदरीनाथ धाम में तो व्यवसायी भी गुजरात और हरियाणा और दिल्ली के होंगे।
देवस्थानम बोर्ड बनाना था तो तीर्थपुरोहितों से तो पूछ लेते। फांसी की सजा पाए व्यक्ति से भी उसकी इच्छा पूछी जाती है तो त्रिवेंद्र चचा ने तीर्थपुरोहितों को विश्वास में नहीं लिया। अंबानी, जिंदल और टिहरी राजघराने को जगह दे दी। तीर्थपुरोहित विरोध ही करते। एक यही तो उनके पास मौका था।
दर्शन क्यों नहीं करने दिये? क्या तीर्थपुरोहितों को यह अधिकार है? जब यह सवाल मैंने केदारनाथ के तीर्थपुरोहितों के अध्यक्ष पंडित विनोद शुक्ला से पूछा तो उनका कहना था, हमने एक पापी को दर्शन करने से रोका। उनका कहना है कि जब पांडवों को महाभारत के बाद पितृहत्या, गौत्र और ब्राह्रमण हत्या का दोष लगा तो आकाशवाणी हुई कि उत्तराखंड जाएं और वहां शिव दर्शन होंगे और तीर्थपुरोहित रुद्राभिषेक पाठ करेंगे। त्रिंवेंद्र चचा का विरोध पूरी तरह से शास्त्र और धर्म संगत है। अब कल सीएम धामी को भी तीर्थपुरोहित अपनी बात कहेंगे।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]