भूखे पेट, नंगे पांव, कैसे लौटे हम अपने गांव। हम सब याद रखेंगे? रखोगे क्या?
न अस्पताल में बेड मिला, न आक्सीजन और न ही इलाज। लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण प्रदेश के 7400 लोगों की जान कोरोना में चली गयी। क्या चुनाव में इसका भी हिसाब होगा? पलायन आयोग ने क्या किया? प्रवासी लोगों के लिए मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना कितनी कारगर हुई? 3 लाख 75 हजार प्रवासियों के गांव लौटने के बाद कितने गांव में रुके और यदि नहीं रुके तो क्या कारण रहा? क्या यह भी बनेगा चुनाव का मुद्दा।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]