खटीमा में सीएम पुष्कर धामी ने मगरमच्छ पूजा की। इस बात से मदमस्त होकर मगरमच्छ हरिद्वार ग्रामीण इलाके में पहुंच गया। उसे देख कर हरीश रावत घड़ियाली आंसू बहाने लगे, भावुक हो कहने लगे, नदी में मगरमच्छ हैं और उन्हें बेसहारा छोड़ दिया गया है। हाईकमान को लगा कि मगरमच्छ से 75 साल का बूढ़ा आदमी कैसे लड़ेगा बेचारा, तो तुरंत उन्हें दिल्ली दरबार बुला लिया। कोविशील्ड की एक बूस्टर डोज दी और कहा, जाओ, अब मगरमच्छ काटेगा नहीं।
उधर, भाजपा ने भालू और बंदरों को पहाड़ों की उन सीटों की ओर खदेड़ दिया, जिधर कांग्रेस का प्रभाव नजर आ रहा था। अब भालू और बंदरों को मनाने के लिए हरदा केले बांट रहे हैं। वादा कर रहे हैं कि कांग्रेस सरकार आने दो, मौसमी, अखरोट, आडू, कीवी भी मुहैया करा देंगे। हरदा के जानवर प्रेम को देख हरक रावत को गुस्सा आया, उन्होंने कार्बेट के सैकड़ों पेड़ काट डाले और कहा, लो, जब पेड़ ही नहीं होंगे तो भालू कहां छुपेंगे, बंदर कहां बैठेंगे? पेड़ कटते देख महंत दिलीप रावत को लगा कि अब तो बंदर उनकी ओर आएंगे। महंत ने गांव वालों को बर्तन भांडे बांटने शुरू कर दिये, कहा, बंदर आएं या भालू, भांडे बजाओ, बंदर भगाओ।
उधर, हष्ट-पुष्ट सतपाल महाराज के इलाके में गुलदार हैं। महाराज ने गुलदारों के हमले को रोकने के लिए बाढ़ सुरक्षा दीवार बना दी हैं। साथ ही जनता को निशुल्क पांच किलो राशन दे रहे हैं कि घर से बाहर मत निकलो। गुलदार क्या कर लेगा? बस, केवल वोट हमें दो। इस बीच बंदर तीरथ के गांव पहुंचे और जब उन्हें वहां कुछ खाने को नहीं मिला तो तार में टंगी तीरथ की पैंट को ही फाड़ डाला। अब तीरथ की समझ में आया कि फटी पैंट का अर्थ क्या होता है? लेकिन तब तक तो कुर्सी नीचे से सरक गयी। इस बीच खैरासैंण के अस्त हो रहे सूरज त्रिवेंद्र चचा को एहसास हुआ कि यदि भांग की खेती उनके गांव में होती तो शायद बंदर और जंगली सूअर उनके गांव न आते। भांग खाते ही मदमस्त हो जाते।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]
त्रिवेंद्र चचा बोले, भू-कानून का विरोध कर रहे लोग पहाड़ विरोधी