ईमानदारी की मिसाल हैं सुभाष थलेड़ी, सीख लें 

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  • दूरदर्शन के प्रचार के लिए किया अपने बेटे के मोबाइल का इस्तेमाल
  • दो साल तक फ्लैट दिल्ली में कब्जाए रखा, न लाइसेंस फीस दी, न कब्जा छोड़ा

दूरदर्शन उत्तराखंड के प्रोग्राम हेड सुभाष थलेड़ी गत माह रिटायर हो गये। वो सरकारी अफसरों और कर्मचारियों के लिए ईमानदारी की नई मिसाल छोड़ गये। मसलन, उन्होंने सरकारी नौकरी पर रहते हुए पूरी तन्मयता, कर्तव्यनिष्ठा और देशभक्ति की भावना से कार्य किया। इसका उदाहरण उनके द्वारा दिये गये मोबाइल बिल से लगाया जा सकता है। उन्होंने अपने बेटे वैभव के नाम का मोबाइल बिल जो कि 14260.54 रुपये का है, रिटायर होने से कुछ दिन पहले यानी 24 मई 2021 को क्लेम किया। उन्होंने इस बिल में कहा है कि बेटे के इस मोबाइल से वो दूरदर्शन उत्तराखंड के लिए सोशल मीडिया का प्रचार करते थे। यानी थलेड़ी तो डीडी उत्तराखंड की नौकरी करते थे, लेकिन उनका बेटा भी उनके इस कार्य में मददगार था। ये होती है कर्तव्यपरायणता। फुल डेडीकेशन।
सहायक निदेशक सुभाष थलेडी जब काम में मग्न हो जाते हैं तो वो भूल जाते हैं कि वो अरुणाचल प्रदेश में हैं, दिल्ली में हैं या देहरादून में। तो क्या हुआ कि वो केंद्रीय पूल का मकान जो दिल्ली में आवंटित था, उसे दो साल तक जमा कराना भूल गये। थलेड़ी को 18 दिसम्बर 2018 को देहरादून के लिए कार्यमुक्त किया गया था। 16 अप्रैल 2021 को दूरदर्शन केंद्र देहरादून ने एक पत्र निदेशक संपदा आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय को लिखा गया कि थलेड़ी ने कहा था कि दिल्ली के आवास की लाइसेंस फीस की कटौती उनकी सेलरी से न की जाएं, वो उसे स्वयं संपदा निदेशालय में जमा करा रहे हैं। 15 अप्रैल 2021 तक थलेडी ने लाइसेंस फीस संबंधी कोई ब्यौरा कार्यालय को नहीं दिया। जब नोटिस जारी किया गया तो थलेड़ी ने उस पर टिप्पणी लिखी कि उनके वेतन से लाइसेंस फीस क्यों नहीं काटी जा रही है। यह तो वेतन से कटनी चाहिए थी। बात में दम है। यानी रिटायर होने से एक महीने पहले तक लाइसेंस फीस जमा नहीं करायी गयी। देखा, ये होता है काम के प्रति डेडीकेशन। काम के सिवाए कुछ याद नहीं।
कर्तव्यनिष्ठा का एक और उदाहरण पेश है। 10 जनवरी 2001 में सुभाष थलेड़ी को सूचना एवं लोकसंपर्क विभाग से रिलीव किया गया था और उन्होंने तीन फरवरी 2003 को दूरदर्शन केंद्र देहरादून में ज्वाइन दी। सर्विस बुक में 23 दिन का कोई रिकार्ड नहीं। इसी तरह से सात मार्च 2008 को महाशय का तबादला देहरादून से डाल्टनगंज किया गया। और उन्होंने ज्वाइन दी एक मई 2008 को। 12 दिन तबादले के और 15 दिन की ईएल दी गयी लेकिन बाकी दिनों का कोई हिसाब नहीं। वो भी भूल गये होंगे काम के बोझ तले।
सुभाष थलेड़ी के कुशल प्रबंधन और टीम भावना से काम करने के किस्से की तीसरी किश्त जल्द।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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