- अंकिता मर्डर में मीडिया ट्रायल पर रोक लगे
- चैनल बेवजह चिल्ला रहे, डीएनए में रेप की पुष्टि नहीं
मुझे कई मीडिया चैनल अपनी डिबेट में बुलाते थे। जब वहां जाता तो अक्सर पाता कि राजनीतिक दलों के अधिकांश प्रवक्ता बहुत ही उन्नत किस्म के गधे हैं। विषय का ज्ञान नहीं होता और बिना तैयारी के कुर्सी पर सज-धजकर बैठ जाते हैं। यह देख-सुन कर मैंने बहाने बनाना शुरू कर दिया। अब मैं किसी चैनल में नहीं जाता। ज्ञानी मैं भी नहीं हूं, लेकिन मैं विषय पर होम वर्क जरूर करता हूं। देहरादून से संचालित चैनलों के अधिकांश पत्रकार भी डिबेट के लिए तैयार नहीं होते। उनकी आरएंडडी और स्क्रिप्टिंग बहुत कमजोर होती है। दया आती है उन पर। संपादक या ब्यूरो चीफ क्या करता है, यह भी बड़ा सवाल है। ब्यूरो चीफ या संपादक वही होता है जो सूचना से विज्ञापन ला सके। आज की बात लें, ब्रेकिंग-ब्रेकिंग चलाते रहे कि डीएनए जांच में अंकिता के साथ रेप की पुष्टि नहीं हुई।
कमाल है इस पत्रकारिता पर। पुलिस ने कब कहा कि रेप की आशंका है। पुलिस ने सीधे कहा कि पुलकित आर्य उसे प्रॉस्टीट्यूशन के धंधे में धकलने की कोशिश कर रहा था। मेरा मानना है कि अंकिता के केस में भटकाव नहीं आना चाहिए। सीधी बात है कि मीडिया ऊल-जुलूल बातें कर रही है कि रिसार्ट लाइसेंस धारक था या नहीं। मिट्टी कैसे थी। कब शुरू हुआ। सीएलयू लिया या नहीं। ये सब सहायक और भटकाव वाली कहानियां हैं।
अंकिता मर्डर केस स्पष्ट है। पहली बात, अंकिता को फोर्स किया गया कि वह वीआईपी गेस्ट के लिए स्पेशल सेवा दे। दूसरी बात, कि उसे धमकाया गया। तीसरी बात, उस पर दबाव बनाया गया कि वह स्पेश्यल सेवा दे। चौथी बात, जब नहीं मानी तो उसे शारीरिक यातना दी गयी। पांचवीं बात, इसके बाद भी जब वह नहीं मानी तो साजिशन उसे नहर किनारे ले जाया गया। और इसके बाद उसे नहर में धक्का दे दिया गया। यानी पूर्व नियोजित षड़यंत्र के तहत अंकिता की हत्या की गयी। शव को भी आरोपियों की निशानदेही पर बरामद किया गया। साफ है कि क्राइम सीन और क्राइम से जुड़े साक्ष्य पुख्ता होने चाहिए।
मसलन, पुलकित आर्य और उसके दोनों साथियों ने पुलिस के पास जुर्म कबूला। क्या वे अदालत में मुकर तो नहीं जाएंगे? यदि मुकरे तो सरकारी पक्ष के पास क्या तर्क या साक्ष्य हैं कि आरोपियों को गुनाहगार साबित कर सकें। पुलिस की चार्जशीट क्या है। क्या साक्ष्य हैं, कितने गवाह हैं। चैट और वीडियो की फारेंसिक रिपोर्ट में क्या है। क्या एसआईटी की चार्जशीट से साक्ष्य मिलान हो रहे हैं। क्या एसआईटी ने जो चार्जशीट पेश करनी है उसमें कोई लूप-होल तो नहीं है कि अंकिता के हत्यारोपितों को इसका कानूनी लाभ मिल सके।
यह भी ध्यान देना होगा कि पुलिस और पटवारी ने पुलकित का साथ दिया। इस कारण पुलकित को अंकिता हत्याकांड से बचाव की कहानी रचने के लिए समय मिल गया। उसने निश्चित तौर पर अपने वकीलों से संपर्क किया होगा और वकीलों ने उसे बचाव के कानूनी-दांव पेच सिखा दिये होंगे। अदालत में पुलकित और उसके साथी नई कहानी गढ़ेंगे। इसे महज हादसा भी करार दिया जा सकता है।
चुनौती यह है कि अंकिता हत्याकांड में सरकारी वकील बचाव पक्ष के वकीलों के तर्कों को किस तरह और किस आधार पर व किन साक्ष्यों से काटेगा। सरकारी वकील पर अधिक भरोसा नहीं किया जा सकता है। सरकार भी बिकती है और सरकारी वकील भी। अदालत में भावनाओं की कोई कद्र नहीं होती। जज यह नहीं देखेगा कि अंकिता के समर्थन में कैंडल मार्च निकला था या उत्तराखंड बंद हुआ था। साक्ष्य, गवाह और प्रमाणों के आधार पर ही अदालत फैसला करेगी।
ऐसे में अंकिता का केस लड़ने के लिए वकीलों का पैनल होना चाहिए। अदालत में तथ्य, साक्ष्य और गवाही चलेगी। यदि इसमें कुछ कमी रही तो अदालत में अंकिता मामला हादसा साबित कर दिया जाएगा और दोषी बच निकलेंगे। अंकिता हत्याकांड के दोषियों का यदि सजा दिलवानी है तो भावनात्मक तौर पर नहीं कानूनी तैयारी करनी होगी। अदालत में जिसके तथ्य और तर्क मजबूत होंगे, जीत उसी की होगी, वरना यह महज हादसा ठहरा दिया जाएगा। मीडिया ट्रायल से आरोपी को ही लाभ मिलेगा। उसे तथ्यों और तर्कों से काट का अवसर मिल सकेगा। अंकिता मामले में मीडिया ट्रायल बंद होना चाहिए।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]