पंडित राधेश्याम ने रामकथा को घर-घर पहुंचाया

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बरेली, 27 नवंबर। पूर्वोत्तर रेलवे इज्जतनगर के राजभाषा विभाग के तत्वावधान में हिंदी के प्रख्यात साहित्यकार पंडित राधेश्याम कथावाचक की जयंती धूमधाम से मनाई गई। इस अवसर पर बरेली सिटी स्टेशन पर स्टेशन राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठक और साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर वरिष्ठ कवि रणधीर प्रसाद गौड़, रोहित राकेश और उपमेंद्र सक्सेना ने पंडित राधेश्याम कथावाचक के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए काव्य पाठ किया।
कवि गोष्ठी के अध्यक्ष वरिष्ठ कवि रणधीर प्रसाद गौड़ ‘धीर’ ने बताया कि पंडित राधेश्याम कथावाचक की गिनती बीसवीं सदी के महान साहित्यकारों में होती है। उन्होंने उर्दू मिश्रित सरल हिंदी में रामायण की रचना कर रामकथा को घर-घर में पहुंचा दिया। उनके लिखे नाटकों की धूम पूरे देश में थी। आज भी रामलीलाओं के मंचन में राधेश्याम रामायण का सहारा लिया जाता है। उन्होंने अपनी काव्य प्रस्तुति में जिंदगी को इस प्रकार परिभाषित किया –
संयमित है अगर फूल है जिंदगी।
नेम संयम बिना शूल है जिंदगी।
जब कि ह्दय में संवेदना हो नहीं,
निर्दयी को तो तृण मूल है जिंदगी।
मशहूर गीतकार उपमेंद्र सक्सेना ने इन शब्दों में जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण बनाने की सलाह दी-
यदि अंधेरा आज दे हमको चुनौती,
हम भला उससे करेंगे क्यों मनौती.
एक दिन सबका चमकता है सितारा,
भूल है, जो मानता अपनी बपौती।
काव्य धारा को गति देते हुए प्रभाकर मिश्र ने लक्ष्य प्राप्ति हेतु निरंतर प्रयास की आवश्यकता बताई। उन्होंने अपनी प्रस्तुति में कहा…
पंथों से पंथ निकलते हैं, दीपों से दीपक जलते हैं।
रुकने वाले रुक जाते हैं, चलने वाले तो चलते हैं।
कुछ लक्ष्य बनाना पड़ता है फिर कदम उठाना पड़ता है,
अविरत चलना ही जीवन है, रुक जाना कोरी जड़ता है।
कवि गोष्ठी का संचालन करते हुए रोहित राकेश ने पं. राधेश्याम कथावाचक को काव्यात्मक श्रद्धांजलि देते हुए कहा-
बरेली की पहचान हैं पं. राधेश्याम कथावाचक,
हिंदी का सम्मान हैं पं. राधेश्याम कथावाचक।
इस अवसर पर स्टेशन राजभाषा कार्यान्वयन समिति, बरेली सिटी के अध्यक्ष एवं अपर मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. सुरेंद्र सिंह चौहान, राजभाषा अधिकारी प्रभाकर मिश्र, स्टेशन अधीक्षक दुर्गानंद प्रसाद, आसिम मसूद, संजीव कुमार, अजय कुमार सिंह सहित बड़ी संख्या में पर्यवेक्षक एवं कर्मचारीगण उपस्थित थे।

 

 

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