जी हां हिंदी फिल्मी नगमे “अँधेरे में जो बैठे हैं, नजर उन पर भी कुछ डालो, अरे ओ रौशनी वालों“ बोल को साकार करने का अनोखा प्रयास कर रहे हैं मेरठ शहर के नौजवान अक्षय राज। अब आप अवश्य ही यह सोच रहे होंगे कि ऐसा क्या कर रहे हैं अक्षय। तो सुनिए, इस नवयुवक ने किन्नर समाज, ट्रांसजेंडर और समलैंगिक वर्ग में आने वाले लोगों को मुख्यधारा से जोड़कर, आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से स्वामी विवेकानंद शुभारती विश्वविद्यालय के ठीक सामने कवीन्स कैफे स्थापित किया है। इसकी सहायता से इन अपेक्षित लोगों की शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार पर कार्य किया जा सके। यह भारत वर्ष का पहला ऐसा कैफे है जिसका शुभारंभ भी बतौर मुख्यातिथि ट्रांसजेंडर समाज सेविका रामकली ने अपने कर कमलों से गत वर्ष ही किया था।
इसी अभियान पर अपने विचार व्यक्त करते हुए अक्षय राज का मत है कि मैं ट्रांसजेंडर समुदाय को भी सामान्य लोगों की भांति ही अपनी पहचान प्रदान करना चाहता हूं। जैसे हम सभी की अपनी पहचान है, क्योंकि वे भी हमारी तरह इंसान हैं। लेकिन हमारे समाज में ट्रांसजेंडर समुदाय को हमेशा हीनभावना से देखा जाता है। मैं उन्हें रोजगार देना चाहता हूं, क्योंकि वे सभी क्षेत्रों में हमारे स्तर से मेल खा सकते हैं और वे राष्ट्र कल्याण के लिए योगदान भी दे सकते हैं।
अभी भी भारत में मानव एलजीबीटी होना एक अभिशाप है। लोग मानसिक और शारीरिक रूप से उन्हें होने वाले नुकसान को महसूस किए बिना उनका मजाक उड़ाते हैं। भेदभाव के कारण वे एक छिपी हुई जिंदगी जी रहे हैं और अपने जीवन को थोड़ा बेहतर बनाने के लिए जूझ रहे हैं। हम अपने मिशन और उनके समाज में योगदान के माध्यम से उनके जीवन को एक सामान्य मानव गौरवपूर्ण जीवन बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इसीलिए मैं, लैंगिक समानता के लिए, एक बड़ा सपना देखते हुए सही अंजाम देने में एक युवा होने के नाते इंसानियत का फर्ज अदा कर रहा हूं। मेरे इस अभियान को सफल बनाने में मेरे माता-पिता, मित्रों सहित संवेदनशील एवं जागरूक लोगों का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है। इसे अब मैं उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पूरे भारत वर्ष में फैलाने की योजना बना रहा हूं यही मेरी जिंदगी का उद्देश्य भी है।
(एस.एस.डोगरा)