शिमला, 4 अक्टूबर। हिमाचल प्रदेश में फार्मा माफिया गिरोह पनप रहे है। नशे की दवाओं, एक्सपोर्ट में नकली दवाएं, जहरीली दवा और बिना मापदंडों के कार्य को हिमाचल प्रदेश ड्रग अथॉरिटी द्वारा क्लीन चिट दिए जाने का तंत्रजाल कायम किया गया है। रिकार्ड खुर्दबुर्द कर दिए जाते हैं। डब्ल्यूएचओ जीएमपी और एक्सपोर्ट के लिए सीओपीपी की अनुमतियो के लिए 20 से 50 लाख रुपये की रिश्वत निर्धारित है। ड्रग कंट्रोलर द्वारा ऐसी-ऐसी दवा कंपनियों को दवाएं बनाने के लाइसैंस दिए गए हैं जो मानक पूरे नहीं करती।
डॉक्टर जैन ग्रुप के अध्यक्ष एवं सामाजिक कार्यकर्ता एमसी जैन ने आज यहां शिमला प्रेस क्लब में पत्रकार वार्ता में हिमाचल प्रदेश में फार्मा इंडस्ट्री में चल रहे भ्रष्टाचार का तथ्यों सहित खुलासा करते हुए आरोप लगाया कि बद्दी में कम से कम 50 ऐसी कंपनियां हैं, जो मानक पूरे नहीं करती और उनके सैंपल रोजाना फैल होते हैं। रिश्वतखोरी प्रकरण के चलते सभी गलत काम किए जा रहे हैं। ड्रग कंट्रोलर बद्दी नवनीत मारवाह देखते ही देखते एक हजार करोड से भी अधिक के मालिक बन गए हैं। ये सारा धन भ्रष्टाचार का ही है। मुख्यमंत्री को भी इसकी शिकायत की गई है। केंद्र सरकार के ड्रग कंट्रोलर ने 1 सितंबर को प्रदेश सरकार को एक पत्र प्रेषित किया है जिसमें प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा इस मामले में कार्यवाही का अधिकार क्षेत्र स्वास्थय सचिव को देकर जांच के लिए कहा गया है। एक शिकायती पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा गया है। जिसमें ड्रग माफिया की सांठगांठ के गंभीर आरोपों की पूरी सूची प्रधानमंत्री को भेजी गई है। 28 अप्रैल को पीएमओ से इस शिकायत की रिसीव प्रति भी शिकायतकर्ता को भेजी गई है।
शिकायतकर्ता एमसी जैन ने बताया कि इस पत्र की प्रति राष्ट्रपति, सु्प्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, निदेशक सीबीआई, निदेशक ईडी और हिमाचल के राज्यपाल के अलावा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा व अन्य मंत्रियों समेत कुल 23 अधिकारिक क्षेत्रों को प्रेषित की गई है। 5 मई को पीएमओ से जांच बावत यह चिट्ठी मुख्य सचिव हिमाचल प्रदेश को भेजी गई है। 4 जून को प्रधानमंत्री मोदी को दोबारा शिकायत पत्र प्रेषित किया गया। जिसमें जानकारी का अधिक विस्तार करते हुए नई दवाओं को दी जाने वाली अवैध अप्रूवल और कंपनियों का नाम सहित ब्यौरा प्रस्तुत किया गया है। नारकोटिक्स विभाग और राजनेताओं से संबंधों का हवाला देकर ब्लैकमेलिंग की जाती है। भारी भरकम रिश्वत की राशि देने वाले उद्योगपति द्वारा तैयार की जाने वाली दवाओं की गुणवत्ता संदेह के दायरे मंे है। आरोप के मुताबिक इस अवैध उगाही में एमसी फार्मा पांवटा साहिब के केयर टेकर के. चंद्रु, सिम्बोसिस फार्मा के मालिक जगबीर सिह, स्कोट आइडियल बद्दी के मालिक संजीव गोयल और रोयल एप्पल बद्दी के ट्रेडर पंकज कपूर समेत धर्मशाला स्थित एक आश्रम संचालक पत्रकार प्रत्यक्ष तौर पर संलिप्त है।
जैन ने अपने आरोपों को 24 बिंदुओं में पेश किया….
1. काला अम्ब स्थित मिक्सी लैब्रोट्री में 18 लोन लाइसेंस हैं। इस कंपनी की निर्मित दवाइयों से हाल ही में पीजीआई चंडीगढ में पांच बच्चों की मृत्यु हो गई। जिसमें खूब हो हल्ला मचा। लेकिन दो ही दिन में सब कुछ अरेंज कर लिया गया और प्रकरण को बडी ही सफाई से दबा दिया गया। सूत्र बताते है कि इस प्रकरण मे 50 लाख रुपये अकेले ड्रग कंट्रोलर को बतौर रिश्वत दी गई। किसी भी अन्य राज्य में दवाइयों से मौत का कोई प्रकरण सामने नहीं आता, लेकिन सिर्फ हिमाचल प्रदेश में बनने वाली दवाइयों से आए दिन बच्चों की मृत्यु की खबरें प्रकाश में है। इस कंपनी को भारत सरकार के ड्रग विभाग के अंतर्गत् पूरे भारत के लिए रेड अलर्ट घोषित किया है। लेकिन हैरानी है कि हिमाचल प्रदेश ड्रग विभाग द्वारा मात्र इस कंपनी की संबंधित दवा को ही प्रतिबंधित किया गया। जबकि स्पष्ट तौर पर इस कंपनी की तकनीक हाइजैनिक व्यवस्थाओं के अनेक मापदंडों में भारी कमी है। इस विषय में मानवाधिकार आयोग को पत्र प्रेषित किया जाएगा।
2. एक अन्य उद्योग डिजिटल विजन काला अंब की जहरीली कफसिरप दवा के उपयोग से जम्मू में 15 बच्चों की मृत्यु हो गई थी। मानवाधिकार आयोग ने मामला पंजीकृत किया। ड्रग कंट्रोलर जम्मू में एफआईआर दर्ज की गई। मीडिया में भी खूब हल्ला मचा। लेकिन हिप्र ड्रग कंट्रोलर विभाग के तहत कोई भी कार्र्वाई नहीं की गई।
3. हालिया प्रकरण में ओरिसन फार्मा काला अंब में नारकोटिक्स विभाग और पंजाब पुलिस ने दबिश दी और सात सौ किलोग्राम नशे की खेप पकडी गई। पंजाब नारकोटिक्स ने एनडीपीएस में मामला दर्ज किया। करीब डेढ महीने यह फैक्टरी बंद रही। इसके अलावा डीजीपी हिप्र के अंतर्गत् भी कार्रवाई अमल में लाई गई और इस फैक्टरी को बंद करने बावत नियमों का हवाला पेश किया गया। लेकिन ड्रग विभाग हिप्र द्वारा मिली छूट से यह फैक्टरी लगातार कार्यरत है। अहम है कि नशे की सात करोड़ गोली पकडी गई। एनसीबी द्वारा मुकद्दमा दर्ज है। हैरानी है कि हिप्र में कोई मुकदमा दर्ज नहीं है। करीब दो माह पूर्व जब इस प्रकरण में कार्रवाई की जवाब तलबी को लेकर एक आरटीआई दायर की गई तो विभाग ने नाममात्र की कार्यवाही दर्शाते हुए कंपनी द्वारा बनाए जाने वाली नशे की दवा को सस्पेंड कर दिया और खानापूर्ति दर्शा दी।
4. वर्ष 2019 में ओरिसन फार्मा कपनी धारक के करीबी संबंधी स्कोट आइडियल बद्दी के मालिक संजीव गोयल का एक्सपोर्ट व्यापार में एक सैंपल फेल हो गया, जिसकी वजह से तत्कालीन स्वास्थय मंत्री हिप्र विपिन परमार को अपने पद से त्यागपत्र देना पडा था। इस प्रकरण में ड्रग कंट्रोलर नवनीत मारवाह की भूमिका करोडों रुपये के लेनदेन में संदेहास्पद रही। जिस देश से यह सैंपल फेल घोषित किया था, उम्हांेने भारत सरकार से इस विषय मे जांच बावत जवाब तलबी की, लेकिन इस विषय में मंत्रालय द्वारा कोई जवाब नहीं दिया गया। तत्कालीन मंत्री विपिन परमार द्वारा कडी कार्र्वाई के आदेशों के बावजूद कार्रवाई नहीं की गई और परिणामस्वरुप विपिन परमार को अपना इस्तीफा देना पडा।
5. ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया द्वारा रिसर्च प्रोडक्ट दवाइयों को बनाने की अप्रूवल का विधान निहित है। नियमानुसार एक से दो वर्ष बाद जब यही रिसर्च प्रोडक्ट दवा बाजारों में पुरानी हो जाती है तो यह अप्रूवल राज्यों के ड्रग कंट्रोलर द्वारा प्रदान की जा सकती है। सूत्रों के अनुसार हिप्र में ड्रग कंट्रोलर हिप्र द्वारा नियमों को ताक पर रख कर यह अप्रूवल करीब 20 से 25 लाख की निर्धारित रिश्वत की एवज में प्रदान की जाती रही है। इसी तकनीकी खामी का लाभ उठा कर इस अप्रूवल की कापी केवल संबंधित उद्योग को दी जाती है। और सरकारी रिकार्ड मे यह अप्रूवल की कापी नहीं लगाई जाती। और एक से दो वर्ष के भीतर यह ड्रग अधिकारिक तौर पर संबंधित उद्योग द्वारा सार्वजनिक की जाती है।
6. एक नियम के मुताबिक ‘किसी को अगर किसी ड्रग की परमिशन लेनी है तो उसे उक्त संबंधित ड्रग का टेक्नीकल डाटा जुटाना होता है। ड्रग उद्योग जो पहले से ही किसी भी दवा का निर्माण कर रहा है, उनसे ही संबंधित दवा का तमाम ब्यौरा जुटाने के बाद दवा बनाने हेतु अनुमति प्राप्त किए जाने का नियम है। एमसी फार्मा ने स्टेबल्टी स्टडी डाटा ब्राइट हैल्थ केयर को 80 ड्रग प्रोडक्ट का डाटा मुहैया करवाया। जिसके लिए ड्रग विभाग को करीब 30 लाख की रिश्वत प्रदान की गई। इस प्रकरण में अहम यह है कि जो ड्रग डाटा एमसी फार्मा ने प्रदान किया स्वयं इस उद्योग के पास संबंधित दवा बनाने की अनुमति ही नहीं है। इस प्रकार के भ्रष्टाचारिक मामले इसलिए पनप रहे हैं कि तमाम चक्रव्यूह में दो या तीन ही मुख्य किरदार होते हैं। निरिक्षण प्रावधान के अंतर्गत् ड्रग इंस्पेक्टर से विभागीय दबाव बना कर जबरन रिपोर्ट बनवा ली जाती है।
7. जबरन उगाही के तंत्र में पांवटा और काला अंब का सारा गोरखधंधा सिम्बोसिस फार्मा का मालिक जगबीर सिह देखता है। इस आरोपित की चार फार्मा कंपनियां है। वर्ष 2012-13 में छोटी सी कंपनी पार्टनरशिप में चलाते हुए आज चार कंपनियों का मालिक है, जिसमें ओविएशन रेमेडिज, साई टैक काला अंब और एक अन्य कंपनी शामिल है। तकनीकी तौर पर भ्रष्टाचार का आलम यह है कि उक्त प्रत्येक कंपनी के पास 18-18 लोन लाइसेंस है। लोन लाइसेंस प्रक्रिया फार्मा को ऐसे समझ सकते हैं जैसे उदाहरण के तौर पर एक तो होता है थर्ड पार्टी मैन्यूफैक्चरिंग उसमें कोई लाइसेंस नहीं होता। लोन लाइसेंस से उसी संबंधित कंपनी का नाम मैन्यूफैक्चरिंग में आता है। उत्पादक का नहीं। इस प्रक्रिया में क्षेत्र विशेष निश्चित किया जाता है। जैसे 1200-1500 स्कैयर फीट एरीया लोन लाइसेंस धारक कंपनी को मुहैया करवाया जाता है। और यह रिकार्ड में आएगा कि लोन लाइसेंस मुख्य धारक दूसरी कंपनी को कितने घंटे की शिफ्ट प्रोडक्शन हेतु प्रदान कर रहा है। मशीनें सिम्बोसिस, ओविएशन या साइटेक की प्रयोग होती है। भ्रष्टाचार का तकनीकी बिंदु यह है कि एक-एक कंपनी के पास 18-18 लोन लाइसेंस है। सवाल यह उठता है कि क्या 15-15 मिनट के लिए फैक्टरी किराए पर दी जाती है। यह केवल नंबर दो के पैसे को एक नंबर बनाने के लिए एक तंत्र संरचना स्थापित की गई है। यह जगबीर सिह साइटेक का भी मालिक है। जिसको एक मामले में माननीय न्यायालय द्वारा सजा दी गई है। लेकिन इसके बावजूद ड्रग कंट्रोलर की दलाली के कारण इसका धंधा खूब फलफूल रहा है। हैरानी की बात यह भी है कि इस व्यक्ति ने मिक्सी लैब्रोट्री (जिस कंपनी की निर्मित दवाइयों से हाल ही में पीजीआई चंडीगढ में पांच बच्चों की मृत्यु हो गई थी) से लोन लाइसैंस लिया हुआ है। यह जानकारी आरटीआई के माध्यम से जुटाई गई है।
8. जब डब्ल्यूएचओ या किसी अन्य निरिक्षण की बात होती है तो ड्रग कंट्रोलर हिप्र के अधीनस्थ निरीक्षण रिपोर्ट बनवाना मारवाह के अपने हाथ की बात है। अहम है कि किसी भी दवा निर्माता पर अगर 50 ओबजेक्शन लगाए भी जाते हैं, तो मिलीभगत से यह तमाम ओबजेक्शन एक ही रात में ठीक किए जाने का दावा किया जाता है। सवाल यह है कि आखिर एक ही बार में 50 ओबजेक्शन कैसे ठीक हो जाते हैं। पांवटा साहिब, लाका अंब और बद्दी औद्योगिक क्षेत्रों में इस प्रकार के सैकड़ों उदाहरण है। इस कृत्य में बतौर रिश्वत पेमेंट क्लेक्शन का जिम्मा उक्त आरोपित पंकज कपूर निवासी पंचकुला के अधीन है।
9. कई राज्यों से ब्लैकलिस्टेड सनवैट फार्मा काला अंब को लगातार सैंपल फेल होने के बावजूद ड्रग कंट्रोलर द्वारा क्लीन चिट दी गई है। हिप्र में दवाई के टैंडर के सिलसिले में तमिलनाडु मेडिकल कारपोरेशन द्वारा हालिया एक निरीक्षण किया गया। जिसका विवरण कारपोरेशन की वेबसाइट पर मौजूद है। इस प्रक्रिया के अनुसार 25 फैक्टरियांे का निरिक्षण किया गया। जिसमें 7 फैक्टरियां हाइजेनिक नहीं पाई गई और जीएमपी मापदंडों के मुताबिक संचालित ही नहीं है। जबकि राज्यों के तहत मापदंड़ों में फेल उक्त कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर की गुणवत्ता के प्रमाणपत्र बांटे जा रहे हैं। नियमों को ताक पर रखकर हिप्र की ड्रग अथॉरिटी इन कंपनियों को डबल्यूएचओ तक का प्रमाणीकरण दे रही है।
10. काला अंब स्थित एथेंस लैब ब्यूरो फार्मा पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग ने दिल्ली में वीवीआईपी दवा वितरण मूवमेंट के तहत एक सेल काउंटर लगाया, यह फर्म 2006 मे शुरू हुई थी, जबकि इस कंपनी ने 2001 का लाइसैंस बनवा कर दर्शाया। भारत सरकार के अंतर्गत् कडी कार्यवाही अमल में लाए गई और एफआईआर दर्ज करने के साथ यह कंपनी ब्लैकलिस्टेड घोषित की गई। लेकिन ड्रग अथॉरिटी ने इस कंपनी को लगातार क्लीन चिट दी, और इस कंपनी का व्यापार धड़ल्ले से जारी रहा। लगभग चार माह पूर्व ड्रग अथॉरिटी ने इस कंपनी को प्रोडक्शन रोकने के बारे में एक नोटिस दिया, ड्रग इंस्पेक्टर ने 35 ओबजेक्शन लगाए, लेकिन रिश्वत प्रकरण के चलते तीसरे दिन ही यह फैक्टरी दोबारा से शुरू हो गई। रिश्वत के खेल का लेनदेन पंजाब के जीरकपुर में किया गया।
11. सूचना के अधिकार के अंतर्गत् जुटाई एक जानकारी में सामने आया है कि पिछले 7 वर्ष में हिप्र के भीतर 32 हजार सैंपल फेल हुए हैं और 218 केस दर्ज किए गए हैं। जिन लोगों के 2018 में सैंपल लिए गए उनको 2019 में मात्र एक नोटिस दिया गया और फेल हुई दवाई बावत एक माह का निलंबन दर्शाकर खाता भरपाई की गई। तकनीकी तौर पर दवा के सैंपल फेल होने के जवाब में मौसम और वातावरण के तापमान में असंतुलन की बात कही जाती है। ऐसे में सवाल यह पैदा होता है कि हिप्र में बनने वाली दवा केवल हिप्र में ही बेची जानी है, दूसरे राज्य में नहीं।
12. बीते कोरोना काल में हैल्थ बायोटेक कंपनी बद्दी का मात्र एक्सपोर्ट की अनुमति के तहत ब्लैक मार्केट हेतु चर्चित इंजेक्शन रेमेडीसिवर के करीब दो हजार इंजेक्शन चंडीगढ के एक होटल से पुलिस ने बरामद किए। यह इंजेक्शन 20-20 हजार रुपये तक की ब्लैक में बेचे जा रहे थे। इस प्रकरण में फोटोग्राफ तक प्रकाशित हुए और एफआईआर भी दर्ज हुई। लेकिन यहां हिप्र में कार्रवाई का अभाव रहा। ड्रग अथॉरिटी की मेहरबानी से कंपनी आज भी धड्ल्ले से चल रही है।
13. बद्दी में हिम मेडिकल नाम से एक छोटे अखबार में कार्य करने वाले उमेश पराशर को ड्रग कंट्रोलर नवनीत मारवाह ने अपनी काली कमाई से फंडिंग कर दवा उद्योग खुलवा दिया।
14. दिसंबर 2019 से ड्रग कंट्रोलर मारवाह के संपर्क मे आए रोयल एप्पल बद्दी का ट्रेडर पंकज कपूर अचानक रातोंरात फर्श से अर्श पर कैसे पहुंच गया। आज वह सन सीटी पंचकूला में करीब डेढ करोड़ के फ्लैट का मालिक है, साथ ही 45 लाख की फार्च्युनर कार एचपी 37 एच 0003 और एक लैंटस कार के अलावा एक अन्य महंगी गाडी का मालिक भी है। पंकज कपूर को ड्रग कंट्रोलर मारवाह द्वारा रा मैटेरियल सप्लायर का काम दिलवाया गया। इस अवैध उगाही के धंधे में दवा उद्योगों को ड्रग अप्रूवल की एवज में पंकज कपूर की कंपनी से रा मैटेरियल खरीदने बावत ब्लैकमेल किया जाता है। एक रा मैटेरियल स्पलायर और ड्रग कंट्रोलर की रात दिन की नजदिकियां सार्वजनिक तौर पर विद्यमान है।
15. सर्विस रुल्स के मुताबिक ड्रग कंट्रोलर मारवाह बिना अनुमति अपने कार्यक्षेत्र हेडक्वाटर के 6 किमी दायरे से बाहर नहीं जा सकते। मारवाह ने बद्दी में 6 हजार रुपये किराए पर निवास दर्शाया है। लेकिन प्रदेश राज्य प्रशासन की आंखों में धूल झोंककर प्रतिदिन अपने सेक्टर 35 में 450 नंबर दो मंजिला कोठी में अपने परिवार सहित रहते हैं। हैरानी की बात यह है कि मारवाह ने यह कोठी मात्र तीन हजार प्रतिमाह किराए पर दर्शायी है। चंडीगढ के इस पाश क्षेत्र में तीन हजार रुपये की एवज मे किराए पर कमरा भी नहीं मिलता। इस प्रकरण से इस आशंका को बल मिलता है कि रोजाना की गई उगाही का काला धन चंडीगढ से ठिकाने लागाया जाता है।
16. सेक्टर 44 रामा प्रॉपर्टीज चंडीगढ भी इस गिरोह का हिस्सा है। काली कमाई को ठिकाने लगाने के लिए इस फर्म का लगातार इस्तेमाल किया जा रहा है। मुल्लापुर, पालमपुर और खन्ना समेत बहुत से शहरों में पांज सौ करोड रुपये से भी अधिक की लागत से बैनामी जमीन और मकान खरीद फरोख्त किए जाते रहे हैं।
17. ड्रग कंट्रोलर नवनीत मारवाह द्वारा सामाजिक परिदृश्य में पेश की जाने वाली धनाढ्य पारिवारिक तस्वीर वास्तविकता के बिल्कुल उलट है। आपराधिक पृष्ठभूमि में शामिल नवनीत मारवाह के पिता पर 302 आइपीसी का मामला दर्ज था।
18. नवनीत मारवाह की बेटी की शादी हुई जिसके लिए 1500 कार्ड उद्योगपतियों को भिजवाए गए। इन उद्योगपतियों के लिए 35 कमरे बोकार्ड लिमिटेड कंपनी बद्दी द्वारा दिल्ली में बुक करवाए गए। 15 टैक्सी इनोवा गाडी स्कोट आइडियल बद्दी के मालिक संजीव अग्रवाल द्वारा करवाई गई। शराब का इंतजाम एडले फार्मा उद्योगपति विजय बत्रा द्वारा करवाया गया। विजय बत्रा की उज्बेकिस्तान में दवाई की फैक्टरी है जहां से हवाला के जरिए विदेशों में हिप्र से वसूली रिश्वत की काली कमाई के करोडों रुपये ट्रांसफर किए जाते हैं। उद्योग की मजबूरी है कि दवा उद्योग चलाने के लिए गलत काम करना पडता है। बेटी की शादी में खासतौर पर उद्योगपतियों के लिए शगुन के तीन मूल्य सवा एक लाख, सवा दो लाख और सवा पांच लाख निर्धारित किए गए थे। उस समय ड्रग इंपेक्टर उमेश पराशर ने इस शगुन वसूली में अहम भूमिका निभाई। इस शादी के लिए एक फार्मा कंपनी बद्दी ने दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल में 18 कमरे बुक करवाए थे। जीरकपुर में महिला संगीत के लिए पाम रिसोर्ट बुक करवाया गया, जिसकी बुकिंग मात्र का मूल्य ही 10 लाख निर्धारित है। इस महिला संगीत कार्यक्रम का कुल खर्च करीब 50 लाख हुआ था। जबकि सूचना के अधिकार के मुताबिक आज तक मारवाह को कुल एक करोड 65 लाख रुपये वेतन के तौर पर प्राप्त हुए हैं। कुल मिलाकर एक ही शादी का खर्च करीब 12 करोड आंका गया है। इस शादी में मारवाह की पत्नी द्वारा ही करीब एक करोड के गहने पहने हुए थे। समारोह में हुई फोटोग्राफी से यह तमाम प्रकरण स्पष्ट हो सकता है।
19. नवनीत मारवाह के पुत्र ने चंडीगढ के सेक्टर 10 में पचास हजार रुपये किराए की एक आर्ट गैलेरी द अटोपियन क्लिक खोली है। करीब छह माह तक यह दुकानदारी चलाई गई। लेकिन यहां मीडिया कवरेज बढने के कारण यह दुकान बंद कर दी गई और मारवाह ने अपने बेटे को विदेश भेज दिया। यूरोप मे वह पानी के जहाजों में रईसी ठाटबाट से रहता है। जिसकी लेटेस्ट फोटोग्राफ शिकायत के तौर पर प्रेषित होने के बाद मारवाह ने अपने बेटे का ईंस्टाग्राम अकाउंट बंद कर दिया। इस आर्ट गैलेरी में लगाई जाने वाली पैंटिग्स की कीमत एक हजार से पंद्रह सौ के बीच थी। जबकि यहां प्रत्येक तस्वीर की कीमत पचास हजार रुपये रखी गई और उद्योगपतियों को इस आर्ट गैलेरी से अपने उद्योग चलाने की एवज में 20 तस्वीरों का बिल लेना होता था। कुल मिलाकर प्रत्येक दवा उद्योग को 10 लाख की खरीददारी करनी अनिवार्य की गई थी। इस दौरान करीब तीन सौ बिल फार्मा उद्योगों के काटे गए। इस खरीद-फरोख्त की तस्वीरें आज भी दवा उद्योगों के परिसरों में लगी देखी जा सकती है। अहम यह है कि इस आर्ट गैलरी की तमाम तस्वीरें सिर्फ दवा फैक्ट्ररी को ही बेची गई। इसके अलावा यह तस्वीरें कहीं और नहीं बिकी। मारवाह के पुत्र का बैंक एकाउंट खंगालने पर 15 करोड की पेंटिंग का काला सच निःसंदेह उजागर होगा। यह तमाम काला धन अब विदेश भेजा जा चुका है। मनी लांड्रिंग का सिस्टम बना है। परिवार के समस्त सदस्यराजाओं-महाराजाओं की तर्ज पर शौक फरमाए हैं।
20. नवनीत मारवाह सपरिवार भ्रमण को जाते हैं तो दवा उद्योग उनका सारा लग्जरी खर्चा वहन करते हैं। वर्ष 2018 के एक प्रकरण में नवनीत मारवाह सपरिवार रामेश्वरम घूमने गए। उद्योगपति के चंद्रु की बहन, जो टूर एवं ट्रेवल का छोटा-सा व्यापार करती हैं ने आने-जाने की फ्लाइट, फाइव स्टार में ठहरने का लाखों का खर्च अपने सौजन्य से वहन किया, जबकि इस दौरान 5 लाख की साडि़यां बतौर उपहार दी गई। सोने-चांदी के आभूषण हो या महंगे कपडे, लाखों के गिफ्ट उद्योगपतियों द्वारा मारवाह को प्रदान किए जाने का प्रचलन आम और पुराना है। सवाल यह भी है कि नवनीत मारवाह के दफ्तर में आज तक सीसीटीवी कैमरा क्यों नहीं लगा है। जम्मू-कश्मीर, उतराखंड में सभी जगह ड्रग एक्साइज की पॉलिसी आई थी। तमाम राज्यों ने ड्रग लाइसैंस प्रक्रिया ऑनलाइन की है। इन राज्यो में हर फर्म फैक्ट्ररी का तमाम ब्यौरा मौजूद है लेकिन हिप्र में ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं अपनाई जा रही है। जिससे पारदर्शिता आशंकित घेरे में है।
21. रिश्वत की काली कमाई को ठिकाने लगाने के लिए पूरा तंत्र जाल स्थापित किया गया है। हिप्र के धर्मशाला ंमे एक आश्रम की आड में उगाही की रकम एकत्रित की जाती है। यह आश्रम एक स्थानीय पत्रकार के पिता संचालित करते हैं। इसलिए मीडिया ने कभी इस आश्रम में चल रहे उक्त कृत्य पर गौर नहीं किया। जांच के अभाव में सबूत नष्ट किए जा सकते हैं।
22. 28 अप्रैल को मेरे द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय को चिट्ठी लिखी गई। जो 5 मई को प्रधानमंत्री कार्यालय से प्रमुख सचिव हिमाचल सरकार को मार्क हुई। सरकार को शिकायत आधार पर तमाम रिकार्ड कस्टडी में अधिकारिक तौर पर जुटाना होगा और तमाम आरोपियों की जांच में मोबाइल काल और लोकेशन जैसे अहम बिंदु शामिल किए जाने चाहिए। बद्दी में लेनदेन कम से कम किए जाने की कोशिश की जाती है। चंडीगढ में तमाम कालेधन का संग्रहण किया जाता है। जहां से तमाम राशि हवाला के जरिए विदेशों को भेज दी जाती है। मारवाह का पुत्र विदेशों में इस पैसे को ठिकाने लगाने का काम देखता है। उसका यूरोप के समुद्र में अपना एक योक है। हवाला के जरिए चल रहे कृत्य में चंडीगढ़ के करीब 10 हवाला कारोबारी शामिल हैं।
23. 2019 को समूचे भारतवर्ष में फार्मा उद्योगों की स्थापना को लेकर एक बहुत बडी गर्जना हुई थी। समूचे विश्व में भारत को फार्मा हब बनाने की एक मुहिम चलाई गई। 250 फैक्टरियां सोनीपत में लगाई गई। 86 फैक्टरियां बरवाला में लगाई गई। अंबाला में साहा औद्योगिक क्षेत्र जहां कोई किराए पर कमरा नहीं लेता था, वहां 25 फैक्टरियां दवा की लगाई गईं और 2019 के बाद से एक भी दवा की फैक्टरी हिप्र में नही लगाई गई। हिप्र में दवा उद्योग क्यों स्थापित नहीं हो रहा है, इसका कारण सरकार ढूंढना नहीं चाहती। हिप्र में दवा उद्योग निर्माता अपनी स्थापना को लेकर उत्साहित है। लेकिन रिश्वत तंत्र की दशहतगर्दी इस दिशा में बाधक है। प्रधानमंत्री द्वारा हिप्र को बल्क ड्रग दिया जाना एक बडी उपलब्धि है, लेकिन दुर्भाग्यवश यहां लाइसेंस अथॉरिटी ही संदेह के दायरे मे है। जब अकेले दवाओं फार्मुलेशन में ही इतनी अराजकता है तो ऐसे मे बल्क ड्रग में कितना भ्रष्टाचार होगा, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
24. उपरोक्त तमाम प्रकरण के संदर्भ में 27 सितंबर को हिप्र स्वास्थ सचिव द्वारा विभागीय जांच एक स्वास्थय अधिकारी को सौंपी गई। एक हजार करोड के भ्रष्टाचार से जुडे मामले की बडी जांच का जिम्मा मात्र एक छोटे स्तर के अधिकारी को सौंपे जाने पर एतराज व्यक्त किया गया है। यह मात्र प्रकरण पर लीपापोती किए जाने का संदेह प्रतीत होता है। यह जांच स्पष्ट तौर पर किसी उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायधीश, आईएएस अधिकारी या केंद्रीय जांच एजेंसी से करवाए जाने की मांग की गई है। ताकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हिप्र में बल्क ड्रग उद्योग स्थापना की सरंचना पर इन घोटालों का असर न हो।