सिखों से सीखो सेवा और जीना

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file photo source: social media
  • गुरु गोविंद सिंह जी के ग्रंथ और हथियारों का संग्रहालय है पांवटा साहिब
  • गुरुद्वारे में मिलती है सेवा, संस्कार और देशसेवा की सीख

पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के पांवटा साहिब गुरुदारे में गया। यमुना नदी के किनारे यह एक छोटा-सा खूबसूरत शहर है। गुरुद्वारे में जाओ तो सीखने को बहुत कुछ मिलता है। श्रद्धा, भक्ति, समर्पण, गुरुज्ञान, तप, संस्कार, सेवा भाव और जीने की कला सिखों से सीखने चाहिए। गुरुद्वारे में पार्किंग निःशुल्क है। जगह-जगह कार सेवक हैं। जूते-चप्पलों के लिए भी लोग सेवा करते हैं।
मुख्य गुरुद्वारे में रागी पाठ कर रहे थे। बेहद सुकून मिला। देर तक दरबार में बैठा रहा। यहां गुरु गोविंद सिंह जी के ग्रंथों और हथियारों का भी संग्रह है। उन्हें करीने से दर्शाया गया है। यहां संगरमर पर बेहतरीन नक्काशी किसी को भी आकर्षित कर सकती है। यहां भी वस्त्रों की मर्यादा तय है। दान के लिए कोई दबाव नहीं। श्रद्धा है तो दान पात्र में डाल दीजिए। अभी कुछ निर्माण कार्य जारी हैं। लंगर में मैंने देखा कि सिख कम और हिन्दू अधिक हैं। यहां नियमित लंगर लगता है। प्रसाद ग्रहण करने वाले सैकड़ों लोगों में अधिकांश मजदूर दिखे। तो समझा जा सकता है कि लंगर का उद्देश्य क्या है। सिख समुदाय सेवा और लंगर छकाने में सबसे आगे होता है। जिंदादिल कौम है। हमें इनसे सीखना चाहिए कि अपने धर्मस्थलों को कैसे स्वच्छ और व्यवस्थित रखें।
बता दूं कि सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी यहां साढ़े चार साल रुके थे। यहां उन्होंने दशम ग्रंथ, गुरुवाणी और अन्य कई ग्रंथ लिखे। गुरुद्वारे के अंदर श्रीतालाब स्थान, वह जगह है जहां से गुरु गोबिंद सिंह जी वेतन वितरित करते थे। गुरुद्वारे में श्रीदस्तर मौजूद है, जहां माना जाता कि वे पगड़ी बांधने की प्रतियोगिताओं में न्याय करते थे। पावंटा साहिब सिखों के गौरवमयी इतिहास की यादों को ताजा करता है। इस धरती पर पांवटा साहिब ही एक ऐसा नगर है जिसका नामकरण स्वयं गुरु गोबिंद सिंह जी ने किया है। इतिहास में लिखा है कि गुरु गोबिंद सिंह जी 17 वैशाख संवत 1742 को 1685 ई. को नाहन पहुंचे तथा संक्राति 1742 संवत को पांवटा साहिब की नींव रखी।
प्राचीन साहित्य का अनुभव और ज्ञान से भरी रचनाओं को सरल भाषा में बदलने का काम भी गुरु गोबिंद सिंह ने लेखकों से करवाया। गुरु गोबिंद सिंह जी ने यहां पर एक कवि दरबार की स्थापना की। जिसमें 52 भाषाओं के भिन्न-भिन्न कवि थे। कवि दरबार स्थान पर पूर्णमासी की रात को एक विशेष कवि दरबार भी सजाया जाता था।
पांवटा साहिब गुरुद्वारे में शुद्ध सोने से बनी पालकी है। लोक कथाओं के अनुसार पास में बहती यमुना नदी जब बहुत शोर के साथ बहती थी। तब गुरु जी के अनुरोध पर यमुना नदी गुरूद्वारे के समीप से शांत होकर बहने लगी। जिससे की गुरूजी यमुना किनारे बैठकर दसम् ग्रंथ लिख सके। तब से यहां पर यमुना नदी बिलकुल शांत होकर बहती आ रही है।
(वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार)

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