इस दौरान रेई और शौर से रथयात्रा भी निकाली जाती है जो पुर्थी पहुंचती है। रथयात्रा के साथ जहां माता के गूर शामिल रहते हैं तो वहीं भारी संख्या में स्थानीय लोग भी अपनी मौजूदगी दर्ज करवाते हैं। आज सुबह 6 बजे से मलासनी माता मंदिर पुर्थी में थांदल और पुर्थी के लोग लकड़ी से बनी कुकड़ी (माता का खिलौना) की सजावट करने में जुट गए। सुबह 9 बजे उन्होंने कुकड़ी को आभूषण पहनाकर रथयात्रा के लिए तैयार किया। जिस घर की छत पर मेला मनाया जाता है वहां 24 घंटे दीया जलाकर बलिदानो राजा की पूजा की जाती है। मलासनी माता मंदिर के पुजारी भूरी सिंह ने बताया कि मेले के खत्म होने के अगले दिन यानी कल सुबह माता के खिलौने कुकड़ी को मेले स्थल से वापस लाया जाएगा। परंपरा के मुताबिक कुकड़ी के गहने उतारने से पहले बलि दी जाती थी लेकिन बलि प्रथा बंद होने के बाद अब नारियल चढ़ाया जाता है। चार प्रजामंडलों के धूमधाम के साथ बाहरालू मेला मनाया। इस दौरान उन्होंने एक-दूसरे के गले मिलकर शुभकामना भी दी।
(साभार : वीरू राणा पंगवाल)