हिप्र के 1.71 लाख से अधिक किसानों ने प्राकृतिक खेती को अपनाया

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सोलन, 1 जून। वैज्ञानिकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राज्य के किसानों और बागवानों को लाभान्वित करने के लिए विश्वविद्यालयों और विभिन्न संस्थाओं की प्रयोगशालाओं में किए गए अनुसंधान को खेतों में स्थानांतरित किया जाए। यह बात मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने आज सोलन जिले के नौणी स्थित डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय में आयोजित 12वें द्विवार्षिक राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए कही। प्राकृतिक खेती और अन्य सतत् कृषि तकनीक विषय पर आधारित दो दिवसीय सम्मेलन में देशभर से 731 कृषि विज्ञान केंद्र और विभिन्न राज्यों के 1000 से अधिक वैज्ञानिक और किसान भाग ले रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश के किसान मेहनती और परिश्रमी हैं और नई तकनीकें अपनाने में देश के अन्य राज्यों से आगे हैं। उन्होंने राज्य मंे प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश के पूर्व राज्यपाल और गुजरात के वर्तमान राज्यपाल आचार्य देवव्रत के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग बहुत हानिकारक है। वर्तमान सरकार ने सत्ता संभालने के तीन महीने के भीतर ही किसानों के दीर्घकालीन कल्याण के लिए प्रदेश में प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना आरंभ की और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए 25 करोड़ रुपये का बजट प्रावधान किया और वर्तमान में प्रदेश के लगभग 1.71 लाख से अधिक किसानों ने प्राकृतिक खेती को अपनाया है।
जय राम ठाकुर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विभिन्न मंचों पर प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने में हिमाचल प्रदेश के प्रयासों की कई बार सराहना की है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने देशभर में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय बजट में विशेष प्रावधान किया है। उन्होंने कहा कि रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की उत्पादन क्षमता कम होती है, जो चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि हम हिमाचल प्रदेश को कृषि क्षेत्र में चरणबद्ध तरीके से रसायन मुक्त बनाने के लिए कार्य कर रहे हैं और आने वाले 15 वर्ष में राज्य को एक प्राकृतिक कृषि राज्य बनाने की दिशा में अग्रसर हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने इस वर्ष अंत तक किसानों की आय दोगुना करने का लक्ष्य रखा है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री फसल विविधीकरण पर विशेष बल देते हैं ताकि किसानों की आय को बढ़ाया जा सके। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान भी कृषि अर्थव्यवस्था ने देश की अर्थव्यवस्था को सहारा प्रदान किया। उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों और उन्नत तकनीक अपनाने के कारण आज किसानों द्वारा कृषि, बागवानी और सब्जी उत्पादन के माध्यम से प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद में 10 हजार करोड़ रुपये का योगदान दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक कृषि उत्पादों के विक्रय के लिए प्रदेश सरकार द्वारा किसानों को बेहतर विपणन सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं।
उन्होंने प्रदेश के किसानों और बागवानों से विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों से समय-समय पर दिए जाने वाले बीजों और रोपण सामग्री की उन्नत किस्मों के संबंध में निरंतर मार्गदर्शन करने का आग्रह किया। उन्होंने कृषक समुदाय के कल्याण के लिए विश्वविद्यालय द्वारा किए जा रहे समर्पित प्रयासों की सराहना की। उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन से फल-सब्जी और सतत् कृषि के क्षेत्र में अपने अनुसंधान को निरंतर आगे बढ़ाने का आग्रह किया ताकि किसान और बागवान लाभान्वित हो सकें।
उन्होंने आशा व्यक्त की कि इस दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में वैज्ञानिकों को भारत में कृषि एवं बागवानी के भविष्य को और अधिक सुदृढ़ करने तथा इस क्षेत्र में उभरती प्रौद्योगिकी के बारे में गहन विचार-विमर्श करने का अवसर मिलेगा।
गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने इस अवसर पर प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि भारत मंे पहली हरित क्रांति के दौरान भारत की मिट्टी में 2.5 जैविक कार्बन थी और वर्तमान मिट्टी में 0.5 से भी कम कार्बन है, जो चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि आज समय की मांग है कि हम प्राकृतिक खेती को अपनाएं इससे न केवल मृदा स्वास्थ्य में सुधार होगा बल्कि कृषि उत्पादन में भी वृद्धि होगी, जिससे किसानों की आर्थिकी में बढ़ोतरी होगी।
इस अवसर पर आचार्य देवव्रत ने वैज्ञानिकों से प्राकृतिक खेती के संबंध में अपने व्यक्तिगत विचार भी साझा किए।
राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने आईसीएआर और विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा प्रकाशित किए गए प्रकाशनों का भी विमोचन किया।
इस अवसर पर प्राकृतिक खेती पर आधारित लघु फिल्म ‘प्रकृति’ भी प्रदर्शित की गई।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने नई दिल्ली से कार्यक्रम को वर्चुअल माध्यम से संबोधित करते हुए कहा कि भारत विकास के क्षेत्र में विश्वभर में अग्रणी राज्य के रूप में उभरा है। उन्होंने कहा कि प्रयोगशालाओं में किए जाने वाले अनुसंधान को खेतों तक ले जाना समय की मांग है। उन्होंने कहा कि खाद्यान्न उत्पादन में देश को आत्मनिर्भर बनाना वैज्ञानिकों और किसानों का कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि पहले कृषि में उर्वरकों का कम से कम उपयोग होता था, जो वर्तमान में कई गुना बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी का अधिक से अधिक उपयोग करना आवश्यक है, लेकिन इसके साथ ही रासायनिक उर्वरकों का कम से कम उपयोग किया जाना चाहिए।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने कहा कि किसानों की कड़ी मेहनत, समर्पण और देश के वैज्ञानिकों के प्रभावी अनुसंधान के फलस्वरूप देश में अनाज, बाजरा, तिलहन, फल, कपास, गन्ना आदि का रिकॉर्ड उत्पादन हो रहा है। उन्होंने कहा कि खाद्यान्न उत्पादन के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए दृढ़ प्रयास किए जाने चाहिए।
आईसीएआर के निदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्रा ने कहा कि आईसीएआर आज देशभर के किसानों के लिए विश्वास के प्रतीक के रूप में उभरा है। उन्होंने कहा कि महामारी के दौरान भी कृषि उत्पादन बढ़ा है और इसका श्रेय देश के किसानों और आईसीएआर के उचित शोध और मार्गदर्शन को जाता है। उन्होंने किसानों की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए टिकाऊ खेती पर बल देते हुए कहा कि दो दिवसीय विचार मंथन सत्र इस दिशा में एक सराहनीय प्रयास है।
इस अवसर पर विस्तार शिक्षा आईसीएआर के उप महानिदेशक डॉ. ए.के. सिंह ने मुख्यमंत्री अन्य गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत किया। उन्होंने आईसीएआर द्वारा देशभर में चलाई जा रही विभिन्न गतिविधियों और उपलब्धियों की जानकारी देते हुए विस्तृत प्रस्तुति भी दी।
डॉ. वाई.एस. परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया।
कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर, सचिव कृषि राकेश कंवर, विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति, वैज्ञानिक और प्राकृतिक खेती को अपनाने वाले प्रगतिशील किसान और अन्य गणमान्य व्यक्ति इस अवसर पर उपस्थित थे।

 

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