कोरोना आपदा में संक्रमण काल के दौर से गुजर रही है हिंदी पत्रकारिताः दयानंद वत्स

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हिंदी पत्रकारिता दिवस

नई दिल्ली, 30 मई। अखिल भारतीय स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक संघ और नेशनल मीडिया नेटवर्क के संयुक्त तत्वावधान में आज उत्तर पश्चिम दिल्ली स्थित संघ के मुख्यालय बरवाला में हिंदी पत्रकारिता दिवस पर संघ के राष्ट्रीय महासचिव एवं नेशनल मीडिया नेटवर्क ग्रुप ऑफ न्यूजपेपर्स के संस्थापक समूह संपादक दयानंद वत्स की अध्यक्षता में कोरोना महामारी में हिंदी पत्रकारिता की दशा और दिशा एवं भविष्य की संभावनाएं विषयक सार्थक टेली- परिचर्चा का आयोजन किया गया। दयानंद वत्स ने इस अवसर पर अपनी ड्यूटी करते हुए शहीद हुए कोरोना यौद्धा पत्रकारों को श्रद्धा सुमन अर्पित की और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कोरोना में दिवंगत हुए पत्रकारों के परिवारों की सहायता राशि पांच लाख से बढाकर 25 लाख करने की मांग की है। वत्स ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भी मांग की है कि वह भी दिल्ली सरकार की ओर से अनुग्रह राशि की घोषणा कर पीडि़त परिवारों की मदद करें।

अपने संबोधन में दयानंद वत्स ने कहा कि निरंतर प्रगति के बावजूद कोरोना काल में हिंदी पत्रकारिता इस समय संक्रमण काल के दौर से गुजर रही है और अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए संघर्षरत है। कोरोना महामारी ने समाचारपत्रों के प्रकाशकों और पत्रकारों के समक्ष आजीविका का संकट खडा कर दिया है। हिंदी प्रिंट मीडिया घाटे का सामना कर रहा है। अखबार बंद हो रहे हैं। पत्रकारों की नौकरियों खतरे में पडी हैं। हजारों लघु और मध्यम समाचारपत्र विज्ञापनों के अभाव में धीरे-धीरे बंद हो चुके हैं।

सत्ता की थाप पर नाचते पत्रकार फिर भी नहीं बहुरे दिन

उदन्त मार्तण्ड के प्रकाशन के समय जो हिंदी पत्रकारिता एक राष्ट्रीय मिशन थी कालांतर में आज वह आधुनिक डिजिकल युग में एक व्यक्ति, समूह अथवा किसी निजी कंपनी की दुकानों के व्यवसाय के रूप में परिवर्तित हो गई है। इलेक्ट्रोनिक मीडिया भी इसकी चपेट में है। पत्रकारिता तो अब खुल्लम-खुल्ला स्पेस सेलिंग का व्यापार हो गई है। संपादक के पद पर आज बाजार हावी है। हालांकि पत्रकारिता का स्वर्णिम दौर 21वीं सदी में आते- आते अपनी चमक और कलम की धार दोनों तेज कर चुका है। फिर भी प्रसार संख्या में अधिकता के बावजूद विज्ञापन जुटाने के मामले में हिंदी पत्रकारिता अंग्रेजी पत्रों से मात खा रही है। विज्ञापन उद्योग भी अंग्रेजी पत्रों को तरजीह देता है, क्योंकि परचेजिंग पावर अंग्रेजी जानने वालों के पास हिंदी की अपेक्षा कहीं अधिक है। उस पर बाजार हावी हो गया है, इसलिए उसे अंग्रेजी से कडी टक्कर मिल रही है। शासन तंत्र में भी अंग्रेजी अखबारों की ही विश्वसनीयता आज अधिक है। फिर भी आज हिंदी पत्रकारिता अपनी एक सुदृढ वैश्विक पहचान बना चुकी है। उसकी दशा अच्छी स्थिति में है और दिशा समयानुकूल है। तमाम मुश्किलों और झंझावातों के बीच हिंदी पत्रकारिता विश्व पटल पर अपना परचम फहराए हुए है जो एक शुभ संकेत है।

इस मौके पर टेलीचर्चा में दयानंद वत्स, आचार्य सुभाष वर्मा ने हिंदी पत्रकारिता के छात्रों, प्राध्यापकों, पत्रकारों, संपादकों को हिंदी पत्रकारिता दिवस की शुभकामना देते हुए स्वर्गीय गणेश शंकर विद्यार्थी, महात्मा गांधी, राजेंद्र माथुर, अज्ञेय जी के हिंदी पत्रकारिता के लिए किए गए योगदान को याद किया।

 

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