सनातन धर्म में जहां माता की आराधना पूजा का महत्व है, वहीं राम नवमी की पूजा का भी अपना विशेष महत्व है। इस दिन को दुर्गा महा नवमी भी कहा जाता है। यह तिथि शारदीय नवरात्रि की अंतिम दिवस के रूप में मनाई जाती है। इस दिन माता के 9वें स्वरूप मां सिद्धदात्री की पूजा की जाती है।
इस वर्ष नवरात्रि राम नवमी 14 अक्टूबर को मनाई जा रही है। तिथि का आगे बढना या कम होना ज्योतिषीय गणना के आधार पर होता है। अतः इस वर्ष राम नवमी 13 अक्टूबर की रात्रि से ही शुरू हो जाएगी। पंचांग के अनुसार…
नवमी तिथि प्रारंभः 13 अक्टूबर रात 8.05 बजे से
नवमी तिथि समाप्तः 14 अक्टूबर शाम 6.50 बजे
नवमी के दिन क्यों करें भगवान नारायण विष्णु की पूजा…
इस बार नवरात्रि बृहस्पतिवार को पड रही है, जो कि भगवान विष्णु की आराधना का दिन है अतः भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए इस दिन भगवान विष्णु की पूजा आराधना करनी चाहिए। माता लक्ष्मी विष्णु के चरणों में विराजती है अतः मान्यता है जहां भगवान विष्णु रहेंगे माता लक्ष्मी स्वयं चली आएंगी।
रामनवमी पर कन्या पूजन का विशेष महत्व…
नवरात्रि के सभी दिवस सिद्ध दिवस के रूप में माने जाते हैं। इन दिनों की गई पूजा आराधना से जल्द सफलता अर्जित होती है। नवरात्रि में सभी दिनों में कन्या की पूजा की जाती है, परंतु नवें दिन कन्या का पूजन और कन्या भोजन कराने से व्रत पूजा का पूरा लाभ और पूजा की पूर्णता मानी जाती है।
कन्या भोजन के उपरांत कन्याओ को दक्षिणा देकर सम्मान के साथ मातृ समूह को याद कर विदाई दी जाती है, जिससे माता दुर्गा अत्यंत प्रसन्न होकर अपने भक्त की मनोकामना की पूर्णता का आशीर्वाद प्रदान करती है।
कौन करे कन्या पूजन…
जो माता की उपासना करता है चाहे उसने उपवास रखा हो या न रखा हो, या फिर पूरे नवरात्र में सिर्फ 1, 3 या 5 दिन व्रत रखा हो उन्हें अवश्य कन्या भोजन कराना चाहिए। इसके लिए किसी प्रकार का बंधन नहीं है। मातृ स्वरूप में हर कोई कन्या भोजन करा सकता है। यदि आप घर में कन्या पूजन नहीं कर सकते तो पास के ही मंदिर में जहां माता की स्थापना की गई हो वहां कन्या पूजन हेतु दान देकर भी इस लाभ के भागी बन सकते हैं।
इस विधि से कन्या पूजन कराने से पूर्ण मानी जाती है…
1. कन्याओं को माता का स्वरूप माना जाता है। माता को सफाई अत्यंत प्रिय है अतः कन्याओं के आने से पहले स्थान की साफ-सफाई कर लेनी चाहिए।
2. कन्या पूजन में बालिकाओं की उम्र सामान्यतः 2 या 3 वर्ष से लेकर 10 वर्ष के बीच हों और बालक सामान्य 9 वर्ष की उम्र तक होना चाहिए।
3. व्रती कन्या को आमंत्रित कर उनके पैर धुलवा कर पूजन कक्ष में उन्हें ले जाकर माता को उनके हाथों से पुष्प अर्पित कराएं। फिर उनका मानसिक पूजन कर उन्हें भोजन खिलाएं।
4. कन्या को माता के लिए बनाई सामग्री खीर, हलवा, पूडी, चना आदि का स्वादिष्ट भोजन कराएं।
5. विदाई के समय व्रती कन्याओं का मातृ स्वरूप भावना के चरण स्पर्श करे और यथाशक्ति दक्षिणा देकर विदा करें।
बिना भैरव के कन्या पूजन सफल नही माना जाता
माता की पूजा बिना भैरव पूजा के पूर्ण नहंीं मानी जाती। अतः भी आप माता की पूजा करें। भैरव को स्थान अवश्य दें। इसी मान्यता के अनुरूप 9 बालिकाओ के साथ एक छोटा बालक भैरव स्वरूप अवश्य साथ में भोजन के समय साथ में बिठाएं।
-स्वामी श्रेयानन्द महाराज
शिष्य स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी
(सनातन साधक परिवार)
मो. 9752626564