राजद्रोह से अधिक गंभीर अपराध क्या हो सकता है, खास तौर से जब किसी देश में किसी राजा का नहीं, जनता का शासन हो। लोकतंत्र में राजद्रोह तो उसे ही माना जा सकता है, जो ऐसा काम हो, जिसकी वजह से तख्ता-पलट हो जाए या देश के टुकड़े हो जाएं या देश में गृहयुद्ध छिड़ जाए। इस तरह की कोई हरकत या बात आंध्र के एक सांसद आर.के. राजू ने नहीं की लेकिन फिर भी आंध्र की सरकार ने उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा ठोक दिया। इसके लिए उनके उस भाषण को आधार बनाया गया, जिसमें उन्होंने कोरोना के इंतजाम में आंध्र सरकार की कड़ी आलोचना की थी। उस तेलुगु भाषण का अनुवाद जब सर्वोच्च न्यायालय ने सुना तो उसने उन्हें जमानत दे दी लेकिन आंध्र सरकार ने उन दो तेलुगू न्यूज चैनलों को भी पुलिस थाने में घसीट लिया, जिन्होंने राजू के भाषण को जारी किया था। उस भाषण को अन्य कई माध्यमों ने भी जारी किया था लेकिन आंध्र सरकार ने सिर्फ उन दो चैनलों को ही कठघरे में खड़े करने की कोशिश की।
सर्वोच्च न्यायालय ने आंध्र सरकार से अगले एक महीने में कुछ सवालों का जवाब मांगा है। जाहिर है कि सरकार के लिए यह सिद्ध करना लगभग असंभव होगा कि उन दोनों चैनलों ने राजद्रोह का कार्य किया है। स्वयं अदालत ने कहा है कि अंग्रेज के जमाने के राजद्रोह-कानून को आज के भारत में लागू करना अजीब-सा है। इस कानून की आड़ में संचार-माध्यमों का गला घोंटना सर्वथा अनुचित है। इस कानून के अनुसार राजद्रोह का अपराध सिद्ध होने पर दोषी व्यक्ति को तीन साल से लेकर आजीवन सजा और जुर्माना भी हो सकता है। यह कानून 1870 में अंग्रेजों ने बनाया था। इसके अंतर्गत अनेक क्रांतिकारियों, कांग्रेसियों, लेखकों और पत्रकारों को ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार किया था। जब भारत आजाद हुआ तो हमारे संविधान से यह ‘राजद्रोह’ शब्द बाहर निकाल दिया गया और धारा 19 (1) में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार सभी नागरिकों को दिया गया। लेकिन भारतीय दंड सहिता की राजद्रोह संबंधी धारा 124 (ए) अपनी जगह बनी रही। इसे बल मिला, 1951 के उस संविधान-संशोधन से जो धारा 19 (2) के अनुसार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुछ ‘तर्कसम्मत प्रतिबंध’ लगा सकती है।
ऐसे प्रतिबंध कभी-कभी आवश्यक हो जाते हैं लेकिन इन प्रतिबंधों का सरकारें कितना दुरुपयोग करती हैं, इसका पता आपको इस तथ्य से मिल जाएगा कि 2019 में इस कानून के तहत 96 लोग गिरफ्तार किए गए और उनमें से अभी तक सिर्फ दो लोग दोषी पाए गए, 29 लोग बरी हो गए। बाकी लोगों पर अभी मुकदमा चल रहा है। सर्वोच्च न्यायालय का यह इरादा सराहनीय है कि अबकी बार वह इस कानून की गहराई में जाकर चीड़-फाड़ करेगी और यह तय करेगी कि वह किसे राजद्रोह कहे और किसे नहीं?
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
(प्रख्यात पत्रकार, विचारक, राजनितिक विश्लेषक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं वक्ता)