मैंने गौर से बोड़ी के चेहरे को देखा
गोल, गौरा सा मुख,
माथा, काले-सफेद बाल
उम्र के इस पड़ाव में
खेत की मुंडेर चढ़ते हांफते
बैठ गयी।
घुटने का दर्द और परदेश बस गये
बेटे की याद
एक साथ हूक सी उठी
और
गोरे गालों में घंस सी रही
खूब बड़ी-बड़ी आंखों से
लुढ़क गये खारे जल के दो मोती।।
दिल से निकली एक तुकबंदी।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]