‘दिन चले न रात चले’ 21वीं सदी के पहले दशक के भारतीय समाज का आईना
सामयिक सिनेमा – दिन चले न रात चले “तुम्हारी राजनीति इतनी कमज़ोर नहीं होनी चाहिए कि इक्के-दुक्के बंदूकधारी उसका सफरनामा तय करे। हर सफरनामे का एक अंत होता है। आपको भी अब कोई नई राह देखनी चाहिए, नया सफर…”। फ़िल्म दिन चले न रात चले का यह संदेश, हमारे समाज में व्याप्त बेचैनी और बौखलाहट, … Continue reading ‘दिन चले न रात चले’ 21वीं सदी के पहले दशक के भारतीय समाज का आईना
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