‘दुखहरण‘ ने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को दिया नया आयाम

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  • विरासत में मिला संगीत, सात साल की उम्र में पहला गायन
  • लखनऊ घराने के कथक नृतक और गायक थे पं. बिरजू महाराज

83 वर्षीय प्रख्यात कथक नृतक पदम विभूषण पं. बिरजू महाराज के निधन के साथ ही हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के एक युग समाप्त हो गया। बिरजू महाराज ने कथक में नृत्य नाटिकाओं को जोड़कर उसे एक नया आयाम दिया। कलाश्रम के माध्यम से उन्होंने देश-विदेश में हजारों शिष्यों को कथक की सीख दी। उनके निधन से शास्त्रीय संगीत जगत में एक बड़ा और कभी न भरने वाला शून्य पैदा हो गया है।
बिरजू महाराज को विरासत में हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत मिला। उनके पिता अच्छन महाराज लखनऊ घराने के थे। बिरजू महाराज का पहले नाम दुखहरण था। बाद में बृजमोहन और बिगड़ कर बिरजू महाराज हो गया। उनकी प्रतिभा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपने चाचा और शंभू महाराज और लच्छू महाराज से कथक नृत्य और गायकी सीखी। महज सात साल की उम्र में उन्होंने कथक पूरी तरह से सीख लिया था और 13 साल की उम्र में वह नई दिल्ली के संगीत भारती कथक नृत्य सिखाने लगे थे। इसके बाद वह कत्थक केंद्र और भारतीय कला केंद्र से भी जुड़े और रिटायर होने के बाद कलाश्रय के माध्यम से कथक सिखाते थे। उन्होंने कई फिल्मों के लिए भी संगीत और नृत्य निर्देशन भी किया और फिल्म फेयर, संगीत नाटक एकादमी पुरस्कार, कालीदास सम्मान समेत अनेक प्रख्यात अवार्ड हासिल किये। उनके निधन से कला जगत में शोक की लहर है।
ऐसी विभूतियां इस संसार में कम ही पैदा होती हैं। पं. बिरजू महाराज को भावभीनी श्रद्धांजलि व नमन।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

 

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