नई दिल्ली, 19 फरवरी। प्रसिद्ध हिन्दी भाषाविद् डॉ विमलेशकांति वर्मा ने कहा कि साहित्य और वसंत एक-दूसरे से जुड़े हैं और वसंत मानव मन का एक भाव है। वसंत कहीं बाहर नहीं होता, वरन मानव मन में ही होता है।
द्वारका स्थित उत्थान फाउंडेशन के तत्वावधान में साहित्य और वसंत ॠतु- एक अनुभूति विषय पर आज एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार आयोजित किया गया। संचालिका अरूणा घवाना ने बताया कि मानव जीवन में वसंत यौवन है और प्रकृति का यौवन बसंत है। सह आयोजक तरूण घवाना ने कहा कि भारत के इतर तेरह देशों के प्रतिनिधियों ने अपनी बात हिन्दी में कही, जो हिन्दी की व्यापकता का द्योतक है। सभी वक्ताओं ने माना कि वसंत के बिना साहित्य अधूरा है।
सूरीनाम से वेबिनार की मुख्य अतिथि लैला लालाराम ने काव्य प्रस्तुति दी। फिजी से मनीषा राम रक्खा ने साहित्य और वसंत पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कालिदास कृत मेघदूतम को इसका उत्तम उदाहरण बताया।
दक्षिण अफ्रीका से डॉ रामबिलास ने रामायण में वसंत ॠतु के प्रसंग से अवगत कराते हुए शिव-पार्वती विवाह के लिए इंद्र के प्रयासों का वर्णन किया। आस्ट्रेलिया से रेखा राजवंशी की काव्य प्रस्तुति ने सबका मन मोह लिया।
लंदन से शैल अग्रवाल ने कहा कि आंखों और मन में वसंत होता है क्योंकि यह एक अहसास है। जो जड़ से चेतन की ओर जाता है।
त्रिनिडाड और टोबैगो के भारतीय उच्चायोग में द्वितीय सचिव शिव कुमार निगम ने अपने वक्तव्य में कहा कि वसंत और साहित्य का चोली-दामन और फूल-खुशबू का सा संबंध है। साथ-साथ काव्य पाठ भी किया। गुयाना से पंडित हरिशंकर ने वसंत ॠतु पर काव्य पाठ प्रस्तुत किया। श्रीलंका से सुभाषिनी ने कहा कि श्रीलंका में तो वसंत ॠतु नहीं होती किन्तु भारत में आकर हिन्दी पढने के बाद उन्होंने वसंत के महत्व को जाना।
स्वीडन से सुरेश पांडेय ने काव्य प्रस्तुति दी। वहीं नीदरलैंड से उर्शीला ने हाल में आए तूफान को अपनी कविता का आधार बना वसंत को नव सृजन का मार्ग बताया।
दक्षिण कोरिया से अजय निबांळ्कर ने वेबिनार के दौरान ही कविता लिखकर सबका मन मोह लिया। पोलैंड से संतोष तिवारी ने काव्य प्रस्तुति दी। मंबई से असिटेंट डायरेक्टर विवेक शर्मा ने बताया कि अब वसंत पर फिल्में नहीं बनती। साथ ही गीतों में बसंत के साथ बहार शब्द जुड़ने की व्याख्या भी की।