गांधी की भक्ति नहीं अनुसरण होना जरूरी

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नई दिल्ली, 2 अक्टूबर। प्रसिद्ध भाषाविद् डॉ विमलेशकांति वर्मा ने कहा कि गांधी द्वारा बताए गए पद चिन्हों पर चलना ही विश्व के लिए जरूरी है। ये उद्गार डॉ विमलेशकांति वर्मा ने अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस व गांधी जयंती के उपलक्ष्य में आज आयोजित अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में किए। वेबिनार का आयोजन उत्थान फाउंडेशन द्वारका द्वारा किया गया था।
आयोजन के सह-आयोजक तरूण घवाना ने बताया कि वेबिनार में ‘हिन्दी साहित्य में गांधी एवं गांधीवाद’- विषय पर चर्चा एवं काव्य पाठ किया गया। जिससे वैश्विक स्तर पर गांधी और गांधीवाद की व्यापकता देखी जा सके। उन्होंने बताया कि इस वेबिनार में प्रवासी भारतीयों के अलावा विदेशी मेहमानों ने भी गांधी और गांधीवाद पर अपने वक्तव्य प्रस्तुत किए। भारत से इतर 15 देशों के वक्ताओं ने इस वेबिनार में भाग लिया।

वेबिनार के अतिथि वक्ता प्रसिद्ध भाषाविद् डॉ विमलेशकांति वर्मा सिंगापुर से जुड़े। उन्होंने गांधीजी के बारे में अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए विश्वास व्यक्त किया कि गांधी द्वारा बताए गए पद चिन्हों पर चलना ही विश्व के लिए जरूरी है। साथ ही उन्होंने गांधी के राम को भी व्याख्यायित किया। उन्होंने कहा कि गांधी जनमानस के मार्गदर्शक हैं।
उत्थान फाउंडेशन की संचालिका अरूणा घवाना ने बताया कि जूम मीट पर आयोजित हुए इस वेबिनार में वक्ताओं ने अहिंसा पर अपनी काव्य प्रस्तुति दी और गांधी और हिन्दी कथा साहित्य पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया।
ताशकंद सरकारी प्राच्य विद्या संस्थान की प्रोफेसर (हिन्दी) प्रो. उल्फत मुखीबोवा ने उज्बेकिस्तान में गांधीजी और लाल बहादुर शास्त्री को याद करते हुए कहा कि उज्बेकिस्तान के लोगों के लिए न तो गांधी और गांधीवाद नया है और न ही लाल बहादुर शास्त्री उनके दिलों से दूर हैं।
यूएसए से अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य प्रवाह की संस्थापक डॉ मीरा सिंह ने गांधी जी पर अपनी काव्यात्मक प्रस्तुति दी।
स्वीडन से इंडो-स्कैंडिक संस्थान के उपाध्यक्ष सुरेश पांडे ने अपने परिवार द्वारा गांधी जी के अनुसरण की बात कही। नार्वे से कवि गुरू शर्मा ने गांधी जी को याद किया।


चीन के क्वान्ग्तोंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर (हिन्दी) के पद पर कार्यरत डॉ विवेक त्रिपाठी ने चीन में गांधी की मौजूदगी के बारे में बताते हुए कहा कि बेशक गांधी कभी चीन नहीं गए किंतु उनके विचारों से वहां का साहित्य और जनमानस अछूता नहीं है।
भारत के दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ बिजेंद्र कुमार ने सिनेमा के माध्यम से युवाओं में गांधी की वापसी पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि सिनेमा ने गांधीवाद को हर बार अपनाया है तभी अंत में बुरे व्यवहार वाले चरित्रों का हृदय परिवर्तन हो जाता है। दृश्य माध्यम से युवाओं को गांधी को समझना आसान हो गया है।
यूके से साहित्यकार एवं संपादिका शैल अग्रवाल ने गांधी जी पर अपने व्यक्तिगत विचार प्रस्तुत करते हुए लुई फिशर की पुस्तक से उद्धरण प्रस्तुत किए।
कनाडा की वसुधा पत्रिका की संपादिका डॉ. स्नेह ठाकुर ने हिन्दी उपन्यास साहित्य में गांधी और गांधीवाद को स्पष्ट करने के लिए राम और लक्ष्मण के वार्तालाप को सुना कर स्पष्ट किया।
यूएई से चित्रकार विदिशा पांडेय ने बापू और लाल बहादुर शास्त्री के चित्रों में गत वर्षों में आए बदलावों का जिक्र किया।
मॉरीशस से कवि शंभू धनराज ने बताया कि मॉरीशस में गांधीजी के विचारों को लोगों ने आत्मसात किया है। साथ ही शैक्षणिक संस्थाओं में गांधीजी को पाठ्यक्रम में पढ़ाने के बारे में भी बताया।
नीदरलैंड्स से हिन्दी शिक्षिका कृष्णकुमारी जरबंधन ने गांधीजी के तीन बंदरों के विषय में बताने वाली कविता प्रस्तुत की।
श्रीलंका से पद्मश्री सम्मान से सम्मानित प्रोफेसर इंद्र दासनायक की शिष्या व केलनीय विश्वविद्यालय से हिंदी प्रोफेसर डॉ. अनुषा निल्मिणि सलवतुर ने श्रीलंका में गांधीवाद की मौजूदगी के बारे में स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि गांधी सिर्फ भारत के ही बापू नहीं हैं वरन श्रीलंका में भी उन्हें सम्मान दिया जाता है।
सूरीनाम से हिन्दी शिक्षिका लैला लालाराम ने गांधीजी द्वारा सूरीनामवासियों के नाम लिखे पत्र के बारे में बताते हुए सूरीनाम में गांधीजी के प्रभाव के बारे में बताया।
त्रिनिडाड-टुबैगो से रुकमिणी होल्लास ने गांधीजी और बा पर एक काव्यात्मक प्रस्तुति कर समां बांध दिया।
वेबिनार के अंत में सब प्रतिभागियों ने गांधीजी के प्रिय भजन ‘रघुपति राघव राजा राम’ गाकर बापू को श्रद्धांजलि अर्पित की।

‘हिन्दी साहित्य में गांधी एवं गांधीवाद’ पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार 2 को

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