भारत प्रदूषणमुक्त कैसे हो?

713
file photo source: social media

दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी दिल्ली को माना जाता है। इस दिवाली के दौरान दिल्ली ने इस कथन पर अपनी मोहर लगा दी है। दिल्ली के प्रदूषण ने भारत के सभी शहरों को मात कर दिया है। वायु प्रदूषण सूची के मुताबिक प्रदूषण का आंकड़ा 50 अच्छा, 100 तक संतोषजनक, 300 तक खतरनाक, 400 तक ज्यादा खतरनाक और 500 तक अत्यंत खतरनाक माना जाता है लेकिन आप अगर इस दिवाली पर दिल्ली के प्रदूषण की हालत जान लेंगे तो आप दंग रह जाएंगे। इस बार दिल्ली के आस-पास और दिल्ली के अंदर कुछ इलाकों में वायु-प्रदूषण 1100 अंकों को भी पार कर गया है। ऐसा कहा जाता है कि अकेली दिल्ली में 2019 में सिर्फ प्रदूषण से 17500 लोगों की मौत हुई थी। इस साल मरनेवालों की संख्या पता नहीं कितनी ज्यादा निकलेगी। प्रदूषण के कारण बीमार होनेवालों की संख्या तो कई गुना होगी। प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य की जो अप्रकट हानि होती रहती है, उसे जानना और नापना तो कहीं ज्यादा मुश्किल है।
यह तब है, जबकि दिल्ली में आप पार्टी की बड़ी जागरुक सरकार है और अत्यंत प्रचारप्रिय प्रधानमंत्री का दिल्ली में राज हैं। यह ठीक है दिल्ली के मुख्यमंत्री और भारत के प्रधानमंत्री खुद पटाखेबाज नहीं हैं और उन्होंने लोगों से अपील भी की कि वे पटाखेबाजी से परहेज करें लेकिन लोगों पर उनका कितना असर है, यह प्रदूषण की मात्रा ने सिद्ध कर दिया है। लोगों के दैनंदिन आचरण में परिवर्तन ला सकें, ऐसे नेताओं का आज देश में अभाव है। हमारे पास कोई महर्षि दयानंद, गांधी या सुभाष जैसे नेता नहीं हैं तो कोई बात नहीं, लेकिन इतने साधु-संत, मुल्ला-मौलवी और पादरी-पुरोहित क्या कर रहे हैं? उन्होंने अपने अनुयायियों को क्या कुछ प्रेरित किया? दिवाली के अलावा भी दर्जनों त्यौहार भारतीय लोग मनाते हैं लेकिन क्या उनमें वे पटाखे छुड़ाते हैं? नहीं, तो क्या वे त्यौहार फीके हो जाते हैं? यों भी दिवाली और पटाखेबाजी का कोई अन्योन्याश्रित संबंध नहीं है। दोनों एक-दूसरे के पर्याय नहीं हैं अर्थात ऐसा नहीं है कि यदि एक नहीं होगा तो दूसरा नहीं होगा। पटाखेबाजी तो दो-चार दिन ही चलती है लेकिन प्रदूषण फैलता है, कई अन्य कारणों से। जैसे धूल उड़ना, पराली जलाना, वातानुकूल की बढ़ोतरी, पुराने ट्रकों, कारों और रेल-इंजिनों का दौड़ना, कोयले से कारखाने चलाना। इन सब प्रदूषणकारी कामों पर रोक लगे या इन्हें घटाया जाए, तब जाकर हम उस लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं, जिसकी घोषणा ग्लासगो के जलवायु सम्मेलन में करके हमारे प्रधानमंत्री ने सारी दुनिया की वाहवाही लूटी है। सबसे पहले हमें पश्चिम की उपभोक्तावादी जीवन-पद्धति की नकल छोड़नी होगी और अपने रोजमर्रा के जीवन को प्राचीन भारतीय शैली के आधार पर आधुनिक बनाना होगा।

An eminent journalist, ideologue, political thinker, social activist & orator

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
(प्रख्यात पत्रकार, विचारक, राजनीतिक विश्लेषक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं वक्ता)

तालिबान को मान्यता का सवाल

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here