- भारतीय हाकी टीम का आज इंग्लैंड से क्वार्टर फाइनल में मुकाबला
- आइए याद करे भारतीय हाकी और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के स्वर्णिम अतीत और इतिहास को, विजय आपका वरण करेगी
1 अगस्त को टोक्यो ओलंपिक 2020 में भारत का क्वार्टर फाइनल में मुकाबला इंग्लैंड से होना है। भारत जब आज इंग्लैंड के खिलाफ खेलने उतरे उसके पहले हमें भारतीय हाकी के उस सुनहरे दौर और पलों के साथ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की यादों को ताजा करना चाहिए, जिनसे हमारे खिलडि़यो का मनोबल ऊंचा होगा और देशवासियों को गर्व होगा।
भारत ने जब अपने पहले ओलंपिक 1928 में एमस्टरडम में खेलने जाने से इंग्लैंड का दौरा किया और वहां भारतीय हाकी टीम ने Folkstone टूर्नामेंट में हिस्सा लिया साथ ही पांच अभ्यास मैच भी खेले। Folkstone टूर्नामेंट में भारत ने पांच मैचों में चार मैच जीते और एक मैच बराबर पर रहा। भारत ने इस टूर्नामेंट में कुल 33 गोल किए और उसके खिलाफ मात्र तीन गोल हुए। इसके साथ ही पांच अभ्यास मैचों में भारत ने सभी मैचों में अपनी जीत दर्ज की। भारत ने अभ्यास मैचों में कुल 38 गोल किए और उसके खिलाफ मात्र 13 गोल हुए और भारत की ओर से किए गए अधिकांश गोल ध्यानचंद की ही स्टिक से निकले थे। इन मैचों से पूर्व जब भारतीय हाकी टीम इंग्लैंड पहुंची थी तब न तो मीडिया ने न ही वहां के निवासियों द्वारा भारतीय हाकी टीम को कोई महत्व दिया जा रहा था न ही उन्हें गंभीरता से लिया जा रहा था, क्योंकि वहां के लोगों और मीडिया को लगता था की गुलाम भारत आखिर हमारे खिलाफ क्या हाकी खेल पाएगा? किंतु जब भारतीय हाकी टीम ने ध्यानचंद की जादुई हाकी के साथ मैच जीतना प्रारंभ किया तो धीरे-धीरे इंग्लैंड में दर्शक और मीडिया दोनों भारतीय हाकी टीम के मैचों को देखने के लिए मैदानों पर उमड़ पड़ी और तब इंग्लैंड हाकी संघ के अधिकारियों ने भारत के इस दौरे में उनके खेल का विश्लेषण किया तो उन्हें लगा कही ऐसा न हो जाए की आने वाले एम्स्टर्डम ओलंपिक में भारत के सामने खेलने का मौका न पड जाए और वहा भारतीय हाकी टीम ध्यानचंद की जादुई हाकी के आगे हमें घुटने टेकने न पड़ गए तो सारी दुनिया में हमारी जग हसाई न हो जाए की इंग्लैंड अपने बनाए गुलाम भारत से हाकी में बुरी तरह परास्त हो गया और इस डर-भय के कारण इंग्लैंड ने 1928 ओलंपिक हाकी से अपना नाम वापस ले लिया।
भारतीय हाकी टीम का यही इंग्लैंड दौरा है जहा ध्यानचंद के खेल से प्रभावित होकर इंग्लिश मीडिया ने ध्यानचंद Hockeyeel और Hockey wizard के नाम से पुकारना प्रारंभ किया था। ध्यानचंद के और भारतीय हाकी टीम के मंत्रमुग्ध कर देने वाले खेल की दहशत ने ही इंग्लैंड को ओलंपिक से अपना नाम वापस लेने पर मजबूर कर दिया था। यह एक प्रकार से इंग्लैंड का भारत का वॉकओवर और आत्मसमर्पण था। यहां यह उल्लेखनीय तथ्य है की इससे पूर्व इंग्लैंड ही ओलंपिक हाकी का गोल्ड मेडलिस्ट देश था। भारत के महान हाकी खिलाडि़यों और ध्यानचंद के खेल की उस स्वर्णिम चमक को भविष्य में आने वाले भारतीय हांकी खिलाडि़यों ने कभी कम नहीं होने दिया। 1948 के लंदन ओलंपिक में कप्तान किशनलाल, बलबीर सिंह सीनियर, केडी सिंह बाबू, लेस्ली काल्डीयस, जैसे महान भारतीय हाकी खिलाडि़यों ने इंग्लैंड को उसी की धरती पर उसी केे दर्शको की उपस्थिति में फाइनल मैच में 4-0 से पराजित करते हुए भारत के लिए लगातार चौथा हाकी ओलंपिक गोल्ड मेडल से भारत मां को आभूषित किया और ओलंपिक स्टेडियम में तिरंगे को उस देश में हवा में शान से फहरा दिया जिस देश ने भारत को वर्षों तक गुलाम बनाकर रखा था और जिसका सपना ध्यानचंद की आंखों ने 15 अगस्त 1936 को बर्लिन ओलंपिक में भारत के लिए तीसरा स्वर्ण पदक जीतने के बाद देखा था।
जिस खौफ को ध्यानचंद और उनकी भारतीय हाकी टीम ने 1927 में पैदा किया था उसी दहशत के चलते 1948 लंदन ओलंपिक में अपने स्वाभाविक कलात्मक हाकी से भारतीय हाकी टीम ने इंग्लैंड को उसके घर में लंदन में ही नेस्तनाबूद कर दिखाया। यहां ध्यानचंद के जीवन की उस महानता और खेल भावना को भी याद करना आवश्यक हो जाता है की जब ध्यानचंद लंदन ओलंपिक में खेलने जाने से महज दो महीने पहले ही अपने अंतरराष्ट्रीय हाकी कैरियर से संन्यास लेने की घोषणा कर दी थी और कहा था- अब मेरी सेवाए देश को हाकी सिखाने और संवारने के लिए है अब देश में नौजवान पीढ़ी बेहतर हाकी खेलने के लिए तैयार है। सोचिए ध्यानचंद भारतीय ओलंपिक हांकी टीम 1948 के लंदन ओलंपिक टीम का हिस्सा होते और यदि ध्यानचंद लंदन ओलंपिक खेले होते तो उनके पास ओलंपिक के तीन नहीं चार स्वर्ण पदक होते, लेकिन उनके जीवन में व्यक्तिगत सफलता के कोई मायने नहीं थे वे केवल भारत के नौजवान खिलाडि़यों के हाथों अपनी स्वर्णिम विरासत को सौपना चाहते थे ताकि भारतीय हांकी आधुनिक काल के लिए विकसित और तैयार हो सके और इसी उद्देश्य से उन्होंने अपना सन्यास घोषित कर दिया। भारतीय हाकी खिलाडि़यों को दुनिया ने कितना मान सम्मान दिया होगा इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की जब 1972 में जर्मनी के शहर म्यूनिख में ओलंपिक आयोजित हुए तो ओलंपिक कमेटी ने म्यूनिख शहर में एक सड़क का नामकरण भारत के महान हाकी कैप्टन रूप सिंह के नाम से किया जिसके गवाह स्वयं उनके भतीजे ओलंपियन अशोक कुमार बने जो भारतीय हाकी टीम के साथ म्यूनिख ओलंपिक खेलने गए हुए थे।
ठीक ऐसा ही सम्मान 2012 में लंदन ओलंपिक कमेटी ने भारत के तीन महान हाकी खिलाडि़यों को दिया जब उनके नाम से लंदन शहर के तीन यू ट्यूब स्टेशनों के नाम क्रमशः मेजर ध्यानचंद, रूप सिंह एवं काल्डियस के नाम पर रखते हुए उन्हें सम्मानित किया और अपनी अद्भुत खेल भावना का परिचय दिया। आज जब हम इंग्लैंड के खिलाफ खेलने उतरेंगे तब भारतीय हाकी टीम को इन महान हाकी खिलाडि़यों की इस स्वर्णिम चमक और उनको मिले इन सम्मानों को अपने दिलोंदिमाग में बसा लेना चाहिए की यदि हम भी उच्च स्तरीय हाकी का प्रदर्शन कर जीत हासिल करेंगे तो हम भी इसी प्रकार के सम्मान के हकदार होंगे जिससे देश गौरान्वित होता है।
साथ ही अगस्त का प्रथम सप्ताह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए सबसे महत्वपूर्ण सप्ताह रहा है जब इसी सप्ताह के अंत के साथ ही 9 अगस्त को हम भारत छोड़ो आंदोलन की वर्षगाठ को मानने जाएंगे जिसने हमारे महान स्वतंत्रता सेनानी और शहीदों की कुर्बानी के आगे अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था। हमें 1 अगस्त 1920 के उस महान दिन को नही भूलना चाहिए जिस दिन महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन की शुरुआत भी की थी। आज जब हम 1 अगस्त 2021 को टोक्यो ओलंपिक 2020 में इंग्लैंड से क्वार्टर फाइनल मुकाबला खेलने उतरेंगे तो वह असहयोग आंदोलन की 101वीं वर्षगांठ होगी और ऐसे महान दिन भारत इंग्लैंड को परास्त ही करेगा, क्योंकि भारतीय हाकी खिलाडि़यों की नसों में भारत के महान हाकी खिलाडि़यों का ही लहू बह रहा है। जिस तिरंगे को ओलंपिक स्टेडियम में फहराने का सपना हर भारतीय खिलाड़ी का होता है, उसी तिरंगे के लिए हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और शहीदों ने अपने प्राण हंसते-हंसते बलिवेदी पर न्योछावर कर दिए थे और उसी तिरंगे की आन-बान-शान के लिए आप इंग्लैंड के खिलाफ मैच खेलने उतरेंगे और इसलिए भारतवर्ष इस बात को लेकर आश्वस्त है की भारतीय हाकी टीम क्वार्टर फाइनल मुकाबले में इंग्लैंड को अवश्य पराजित करेगा। भारतीय हाकी खिलाडि़यों ने हमेशा उस तिरंगे के अपनी मातृभूमि के लिए हाकी खेलकर अपने देश को स्वर्णिम पल दिए हैं, जिसकी नीव और शुरुआत ध्यानचंद और भारत के महान हाकी खिलाडि़यों ने की थी। क्वार्टर फाइनल में भारतीय हाकी टीम की जीत के लिए हम सब भारतीय हाकी खिलाडि़यों को शुभकामनाएं प्रेषित करते हैं और उसके सेमीफाइनल में प्रवेश के जश्न को मनाने के लिए उत्साहित और प्रतीक्षारत है।
-हेमंत चंद्र दुबे बैतूल
भारत-न्यूजीलैंड हाकी मुकाबलाः रक्षा पंक्ति के नाम रहा मैच, ध्यानचंद ने भी इसी दिन था हराया