मधुदीप की लघुकथाः समय का पहिया घूम रहा है

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शहर का प्रसिद्ध टैगोर थिएटर खचाखच भरा हुआ है। जिन दर्शकों को सीट नहीं मिली है वे दीवारों से चिपके खड़े हैं। रंगमंच के पितामह कहे जानेवाले नीलाम्बर दत्त आज अपनी अन्तिम प्रस्तुति देने जा रहे हैं।
हॉल की रोशनी धीरे-धीरे बुझ रही है, रंगमंच का पर्दा उठ रहा है।

दृश्य: एक
तेज रोशनी के बीच मंच पर मुगल दरबार सजा है। शहंशाहे आलम जहाँगीर अपने पूरे रौब से ऊँचे तख्तेशाही पर विराजमान हैं। नीचे दोनों तरफ दरबारी बैठे हैं। एक फिरंगी अपने दोनों हाथ पीछे बाँधे, सिर झुकाए खड़ा है। उसने शहंशाहे हिन्द से ईस्ट इण्डिया कम्पनी को सूरत में तिजारत करने और फैक्ट्री लगाने की इजाजत देने की गुजारिश की है। दरबारियों में सलाह-मशविरा चल रहा है।
“इजाजत है…” बादशाह सलामत की भारी आवाज के साथ दरबार बर्खास्त हो जाता है।
मंच की रोशनी बुझ रही है…हॉल की रोशनी जल रही है।

दृश्य: दो
मंच पर फैलती रोशनी में जेल की कोठरी का दृश्य उभर रहा है। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु जमीन पर आलथी-पालथी मारे बैठे गम्भीर चिन्तन में लीन हैं। जेल का अधिकारी अन्दर प्रवेश करता है।
“भगत सिंह! तुम जानते हो कि आज तुम तीनों को फाँसी दी जानी है। सरकार तुम्हारी आखिरी इच्छा जानना चाहती है।”
“हम भारत को आजाद देखना चाहते हैं। इन्कलाब जिन्दाबाद…” तीनों का समवेत स्वर कोठरी की दीवारों से टकराकर गँूज उठा है।
रोशनी बुझ रही है, पर्दा गिर रहा है।

दृश्य: तीन
धीरे-धीरे उभरती रोशनी से मंच का अँधेरा कम होता जा रहा है। दर्शकों के सामने लालकिले की प्राचीर का दृश्य है। यूनियन जैक नीचे उतर रहा है, तिरंगा ऊपर चढ़ रहा है।
लालकिले की प्राचीर पर पड़ रही रोशनी बुझ रही है। मंच के दूसरे भाग में रोशनी का दायरा फैल रहा है। सुबह का दृश्य है। प्रभात की किरणों के साथ गली-कूचों में लोग एक-दूसरे से गले मिल रहे हैं…मिठाइयाँ बाँट रहे हैं…आजादी का जश्न मना रहे हैं।
मंच का पर्दा धीरे-धीरे गिर रहा है।

दृश्य: चार
तेज रोशनी के बीच मंच पर देश की संसद का दृश्य उपस्थित है। सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच एक अहम मुद्दे पर तीखी बहस हो रही है।
“देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए हमें खुदरा व्यापार में विदेशी पूँजी-निवेश को इजाजत देनी ही होगी…” सत्तापक्ष का तर्क है।
“यह हमारी स्वदेशी अर्थव्यवस्था को नष्ट करने की साजिश है…” विपक्ष जोरदार खण्डन कर रहा है।
सभी सदस्य अपनी-अपनी मेज पर लगे बटन को दबाकर अपना मत दे चुके हैं। लोकसभा अध्यक्ष द्वारा परिणाम घोषित किए जाने की प्रतीक्षा है।
“सरकार का प्रस्ताव बहुमत से स्वीकार हो गया है…” लोकसभा अध्यक्ष की महीन आवाज के साथ मंच अँधेरे में डूब जाता है।
रोशनी में नहाया हॉल स्तब्ध है। दर्शक ताली बजाना भूल गए हैं।

मधुदीप

(मेरी चुनिन्दा लघुकथाएँ से साभार)
दिशा प्रकाशन
138/16, त्रिनगर,
दिल्ली-110 035.

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